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श्रोप्रवचनसारटोका। जाये जिससे मुनि मार्ग भृष्ट होजाये । इस कारण शुभोपयोगमें ठहरते हुए शुभ रागके धार्मिकभाव किया करते हैं। वास्तवमें शुद्धोपयोग, प्रीति होना व शुद्धोपयोगके धारक व आराधकोंमें भक्ति होना ही शुभोपयोग है। श्री अरहंत, सिद्ध परमात्ना शुद्धोपयोगरूप हैं । आचार्य, उपाध्याय, साधु गोपयोगके सेवक हैं। येही पांच परनेली है। तीन लोकमें येही मंगलरूम हैं, उत्तम हैं, व शरण लेने योग्य हैं । बड़े इन्द्र, धरणेन्द्र, चक्रवर्ती आदि उन ही उत्तम पदधारी परमेडियोकी भक्ति सेवा करते हैं । गुनिगण भी इनहीको शुद्धोपयोगरूप भाव मुनिपटमें पहुंचने के लिये जालम्बन जानकर इन्हीकी भक्ति व सेवा करते हैं । साधुगण शुभोपयोगमें ही अपनी छः नित्य आवश्यक क्रियाओंने वन्दना व स्तुति करते , अरहंत व सिद्ध भगवानकी गुणावलीको प्रगट करनेवाले अनेक स्तोत्र रचने हैं, भजन बनाते हैं तथा आचार्य महाराजश्री विनय करने हुए उनकी आज्ञाको नाथे चढ़ाते हैं व उपाध्याय महाराजसे
सका रहन्य समझकर ज्ञाननग्न रहते हैं तथा साधु महाराजकी विनय करके उनके रत्नत्रय धर्ममें अपना वात्सल्यभाव झलकाते हैं। ___इस शुद्धोपयोगकी भावना सहित शुभोपयोगसे दोनों ही कार्य होते -जितने अंशमें वैराग्य है उतने अंश कर्मोकी निर्जरा करते व जितने अंश शुभोपयोग है उतने अंश महान पुण्यकर्म वांधते हैं। इसी अन्तिभक्ति आवार्यभक्ति बहुश्रुतभक्ति व प्रबचनभक्तिके द्वारा ही शुभोपयोग धारियोंको तीर्थकर नामका महान पुण्य कर्म वन्ध जाता है। " भोपयोगके कारण ही देवगति बांधकर मुनिगण, सर्वार्थसिद्धि तक गमन कर शुभो