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१७६ ] श्रीप्रवचनसारटीका। नहीं करते हैं फिर उस दिन अन्तराय पालते हैं । भोजन एक बार ही करते फिर उपवास ले लेते हैं । कहा है....
भोत्तूण गोयरग्गे तहेव मुणिणो पुणो वि पडिकता। परिमिदएयाहारा खमणेण पुणो वि पारेति । ६१
भावार्थ-भिक्षा चर्याक मार्गसे भोजन करके वे मुनि दोए दूर करनेके लिये प्रतिक्रमण करते हैं । यद्यपि कृत कारित अनुमोदनासे रहित भिक्षा ली है तथापि अपने भावोंकी शुद्धि करते हैं। जो नियम रूपसे एकवार ही भोजन पान करते हैं फिर उपवास ग्रहण कर लेते हैं । उपवासकी प्रतिज्ञा पूरी होनेपर फिर पारणाके लिये जाते हैं।
उत्थानिका-प्रकरण पाकर आचार्य मांसके दूषण बताते हैंपक्के आ आमेमु अ विपञ्चमाणामु मंसपेसीम् । संत्तत्तियमुववादो तज्जादीग पिगोदाणं ॥४७॥ जो पक्कमपकं वा पेसी मंसस्स खादि पासदि वा। सो किल णिहदि पिंड जीवाणमणेगकोडीणं ॥४८॥ पकासु चामास्लु च विपच्यमानासु मांसपेशीपु । सांततिकं उत्पादः तज्जातोनां निगोदानां ।। ४७ ॥ यः पकामपकां वा पेशी मांसस्य खादति स्पशति वा । स किल निहन्ति पिंडं जोवानां अनेककोटीनां ॥४८॥
अन्वय सहित सागाल्यार्थ-(पके अ) पके हुए व (आमेसु आ) कच्चे तथा (विपञ्चमाणासु) पाते हुए (मांसपेसीसु) मांसके खंडोंमें (तज्जादीण) उस मांसकी जातिवाले (णिगोदाणं) निगोद जीवोंका (संत्तत्तियमुववादो) निरंतर जन्म होता है (जो) जो कोई (पक्कम व अपक्कं मंसस्य पेसी) पक्की, या कच्ची मांसकी डलीको