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________________ ४८ ] श्रीप्रवचनसारटीका । अपेक्षाके विना मिथ्यात्त्व पर्यायका अभाव होता है ऐसा मानाजाय तो मिथ्यात्त्व पर्यायका अभाव हो ही नही सक्ता क्योंकि अभावके कारणका अभाव है अर्थात उत्पाद नहीं है । जैसे घटकी उत्पत्तिके विना मिट्टीके पिडका अभाव नहीं होसक्ता इसी तरह परमात्माकी रुचिरूप सम्यक्तका उत्पाद तथा उससे विपरित मिथ्यात्त्व 'पर्यायका नाश ये दोनो बाते इन दोनोके आधारभूत परमात्म रूप द्रव्य पदार्थके विना नहीं होती । क्योकि द्रव्यके अभावमे व्यय और उत्पादका अभाव है। मिट्टी द्रव्यके अभाव होनेपर न घटकी उत्पत्ति होती है न मिट्टीके पिडका भंग होता है। जैसे सम्यक्त और मिथ्यात्व पर्याय दोनोमे परस्पर अपेक्षापना है ऐसा समझकर ही उत्पाद व्यय ध्रौव्य तीन दिखलाए गए है इसी तरह सर्व द्रव्यकी पर्यायोमे देख लेना व विचार लेना चाहिये, ऐसा अर्थ है। भावार्थ-इस गाथामे आचार्यने उत्पाद व्यय ध्रौव्यको एक दूसरेकी अपेक्षासे अर्थात् एक दूसरेके आलम्बनसे होना सिद्ध, किया है । स्वतन्त्र न उत्पाद होतक्ता है न व्यय और न धौव्य ही रह सक्ता है । वास्तवमे वात इतनी है कि पदार्थमे समय समयमें कोई न कोई अवस्था होती रहती है। एक अवस्थाकी तरफ दृष्टि देकर यदि विचार करेंगे तो विदित होगा कि वहां ये तीनो ही हैं । जिस अवस्थाका व्यय होकर कोई अवस्था बनी है उसका तो नाश या व्यय हुभा है, जो अवस्था पैदा हुई है उसका उत्पाद है और दोनो अवस्थाओका आधारभूत पदार्थ बराबर विद्यमान है यही ध्रौव्य है । यदि उत्पाद न माने तो व्यय न होगा।
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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