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द्वितीय खंड। , णिकम्मा अहगुणा किंचूणा चरमदेहदा सिहा ।
लायगांठदा णिचा उप्पादवयेहिं सजुत्ता ॥
भावार्थ-जो कर्म कलक रहित है-मुख्य सम्यक्तादि आठ गुण सहित हैं, अतिम गरीरसे कुछ कम आकारवान है, लोकके अग्रभागमें विराजमान है तथा उत्पाद व्यय सहित है और नित्य या ध्रुव हैं वे सिद्ध है। इस तरह स्व पर द्रव्यका त्रिलक्षण समझकर तथा हरएककी सत्ताको अलगर निश्चय करके अपने आत्माको अपने ही द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षामे सर्व रागादि व पुद्गल विकारोंसे पृथक् अपनी शुद्ध सत्तामें सदा विरानमान जानकर सर्व विकल्पोंको त्यागकर निज आत्माका ही अनुभव करना योग्य हैद्रव्यके लक्षण पहचाननेका यह तात्पर्य है ॥१॥
___ उत्थानिका-आगे सादृश्य अस्तित्त्व शब्दसे कहे जानेवाली महासत्ताका वर्णन करते हैं
इह विविहलक्खणाण, लक्खणमेगं सदित्ति सब्वगयं उवदिसदा खलु धम्म, जिणवरक्सहेण पण्णत ॥६॥
इह विविधलक्षणाना लक्षणमेकं सदिति सवगतम् । उपादेशता खलु धर्म जिनवरभपेण प्रप्तम् ॥६॥
अन्वय सहित विशेपार्थ-(इह) इस लोकमे (विविहलक्खगाणं) नाना प्रकार भिन्न २ लक्षण रखनेवाले पदार्थोका (एग) एक (सव्वगय) सर्व पदार्थोमे व्यापक (लक्खणं) लक्षण (सदित्ति) सत् ऐसा (धम्मं ) वस्तुके स्वभावको ( उवदिसदा ) उपदेश करनेवाले (निणवरवसहेण) श्री वृषभ जिनेंद्रने (खलु) प्रगट रूपसे (पण्णत) कहा है।, ।