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श्रीप्रवचनसारटोका। द्रव्य सदाकाल इन तीन लक्षणोको रखता है। यदि हम शुद्ध आत्माकी ओर ध्यान करें जिनको कुछ काल मुक्त हुए व्यतीत हो चुका है, तो शुद्ध आत्माके भीतर तीनो लक्षण,मिलेंगे। वे अपनी अवान्तर सत्ताको सदा रखते हैं। एक शुद्ध आत्मा दृसरी शुद्ध आत्मासे अपनी सत्ताको खो नहीं देता है। एक क्षेत्रमे अनेक दीपकोका प्रकाश मिला हुआ रहने पर भी हरएक दीपकका प्रकाश अपनी भिन्न २ सत्ताको रग्नता है। यदि उनमेने एक दीपकको वहासे अन्यत्र लेजावे तो उस दीपकके साथ उसका प्रकाश भी अलग चला जायगा, इसी तरह अनेक सिद्धात्मा एक क्षेत्रमे तिष्ठने हैं तौभी अपनी सत्ता भिन्न २ रखते है। इसी तरह शुद्धात्मामें , अनंत ज्ञान दर्शन सुख वीर्य, सम्यक्त चारित्र, अव्यावाध आदि गुण सदा पाए जाते है । तथा इन सव शुद्ध गुणोंमे क्षीर समुद्रमें जल कलोलकी तरह सामान्य अगुरुलघु गुण द्वारा पट् गुणी हानि वृद्धिरूप अवस्था होनेसे समय समय सदृश पर्यायें होती हैं। गुण । पर्यायपना शुद्ध आत्मामे हरसमय सत्ताके साथ अभिन्न रहता है। इसी तरह नवीन पर्यायोका उत्पाद होते हुए व पिछली पर्यायोका व्यय होते हुए तथा शुद्ध आत्माका अनंतगुण सहित, ध्रौव्य होते हुए उत्पाद व्यय ध्रौव्य भी शुद्ध आत्मामे हर समय पाया जाता है, यह भी सत्तासे अभिन्न है। सिद्ध भगवानकी सत्ता 'इस उत्पाद व्यय ध्रौव्यके साथ ही सदा बनी रहती है ।
श्रीनेमिचद्र सिद्धांत चक्रवर्तीने द्रव्यसग्रहमे सिद्धका स्वरूप इसी प्रकारका बताया है