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३६८] श्राप्रवचनसारटीका । है ऐसा पूर्व पक्ष करते हुए गाथा पूर्ण हुई।
भावार्थ-इस गाथामें शिष्यका यह प्रश्न है कि केवली सर्वज्ञ भगवान जब ध्यानका फल परमात्मपद प्राप्तकर चुके तब उनके ध्यान किसलिये व किसका होगा क्योंकि जो वस्तु नहीं मिलती है व उसके मिलानेकी इच्छा होती है व उसीका ही ध्यान उसके लिये किया जाता है परन्तु जब वस्तु मिल गई फिर उसका ध्यान नहीं होसक्ता । इसलिये केवली भगवान ध्यान रहित हैं ऐसा आक्षेप शिष्यने किया है। यहां गाथामें किमटुं शब्द लें तब तो अर्थ यह होगा कि किस लिये ध्यान करते हैं व कमटुं शब्द लें तब अर्थ यह होगा कि किस पदार्थोको ध्याते हैं ।।
उत्थानिका-आगे इस पूर्वपक्षका समाधान करते हैंसव्वावाधविजुत्तो समंतसव्ववखसोक्खणाणड्ढो। भूदो अक्खादीदो झादि अणक्खो परं सोपत्रं ॥ ११ ॥ सर्वावाधवियुक्तः समन्तसर्वाक्षमोख्यमानाढ्यः । भूतोक्षातीतो ध्यायत्यनक्षः पर सौख्यम् ॥ ११० ॥
अन्वय सहित सामान्यार्थ-(सव्वावाविजुत्तो) सर्व प्रकारकी बाधासे रहित व ( समंतसव्वक्वसोक्खणाणडढो ) सब तरहसे सर्व आत्मीक सुख और ज्ञानसे पूर्ण (अक्खादीदो) तथा अतीद्रिय (भूदो) होकर (अणक्खो) दूसरोंके भी इंद्रियोंके जो विषय नहीं है ऐसे केवली भगवान (परं सोक्ख) परमानंदको (झादि) ध्याते है।
विशेषार्थ-जिस समयसे केवली भगवान इंद्रियज्ञानसे रहित अतीद्रिय हुए, व सर्व प्रकारकी पीड़ासे रहित हुए तथा सर्व आत्माके प्रदेशोमें आत्मीक शुद्ध ज्ञान तथा शुद्ध सुखसे परिपूर्ण