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________________ ३०० ] श्रीप्रवचनसारटोका। ___भाव यह है कि शरीर आत्माका कोई कारण या कार्य नहीं है, कर्मोका ही कार्य है ऐसा जानकर सर्व प्रकारके शरीरोंसे । अपनी आत्माको भिन्न अनुभव करना चाहिये ।। ८१॥ उत्थानिका-आगे कहते है कि पांचों ही शरीर नीव स्वरूप नहीं हैं ओरालिओ य देहो देहो वेदिओ य तेजयिओ। आहारय कम्मइओ पोग्गलव्वप्पगा सम्वे ॥ ८२ ॥ औदारिकश्च देहो देहो वैक्रियिकश्च तेजसः । आहारकः कार्मणः पुद्गलद्रव्यात्मका सर्वे ॥ ८२ । अन्वय सहित सामान्यार्थः-(ओरालिओ देहो) औदारिक शरीर (य) और (वेउविओ) वैक्रियिक देह (य तेनयिओ) और तैनस शरीर ( आहारय, कम्मइओ) आहारक शरीर और कार्मण शरीर ये ( सव्वे ) सब पांचों शरीर (पोग्गलदवप्पगा) पुद्गल द्रव्यमई हैं। विशेषार्थः-ये शरीर पुद्गल द्रव्यके बने हुए हैं इसलिये मेरे आत्मखरूपसे भिन्न हैं, क्योकि मै शरीर रहित चैतन्य चमत्कारकी परिणतिमें परिणमन करनेवाला हूं, मेरा सदा ही अचेतन शरीरपनेसे विरोध है। __ भावार्थ-संसारी जीवोंके पांच प्रकारके शरीर पाए जाते हैं। हरएक गरीर अपने २ नामकर्मके उदयसे बनता है | औदारिक शरीर नामकर्मके उदयसे औदारिक शरीर आहारक वर्गणासे, वैक्रियिक' शरीर नामकर्मके उदयसे वैक्रियिक शरीर आहारक वर्ग णासे, आहारक शरीर नामकर्मके उदयसे आहारक शरीर आहारक
SR No.009946
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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