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श्रीप्रवचनसारटोका। ___भाव यह है कि शरीर आत्माका कोई कारण या कार्य नहीं है, कर्मोका ही कार्य है ऐसा जानकर सर्व प्रकारके शरीरोंसे । अपनी आत्माको भिन्न अनुभव करना चाहिये ।। ८१॥
उत्थानिका-आगे कहते है कि पांचों ही शरीर नीव स्वरूप नहीं हैं
ओरालिओ य देहो देहो वेदिओ य तेजयिओ। आहारय कम्मइओ पोग्गलव्वप्पगा सम्वे ॥ ८२ ॥ औदारिकश्च देहो देहो वैक्रियिकश्च तेजसः । आहारकः कार्मणः पुद्गलद्रव्यात्मका सर्वे ॥ ८२ ।
अन्वय सहित सामान्यार्थः-(ओरालिओ देहो) औदारिक शरीर (य) और (वेउविओ) वैक्रियिक देह (य तेनयिओ) और तैनस शरीर ( आहारय, कम्मइओ) आहारक शरीर और कार्मण शरीर ये ( सव्वे ) सब पांचों शरीर (पोग्गलदवप्पगा) पुद्गल द्रव्यमई हैं।
विशेषार्थः-ये शरीर पुद्गल द्रव्यके बने हुए हैं इसलिये मेरे आत्मखरूपसे भिन्न हैं, क्योकि मै शरीर रहित चैतन्य चमत्कारकी परिणतिमें परिणमन करनेवाला हूं, मेरा सदा ही अचेतन शरीरपनेसे विरोध है। __ भावार्थ-संसारी जीवोंके पांच प्रकारके शरीर पाए जाते हैं। हरएक गरीर अपने २ नामकर्मके उदयसे बनता है | औदारिक शरीर नामकर्मके उदयसे औदारिक शरीर आहारक वर्गणासे, वैक्रियिक' शरीर नामकर्मके उदयसे वैक्रियिक शरीर आहारक वर्ग णासे, आहारक शरीर नामकर्मके उदयसे आहारक शरीर आहारक