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२३२] श्रीप्रवचनसारटीका। नाशवंत हैं इस कथनकी मुख्यतासे चार गाथाओंके द्वारा दूसरा स्थल पूर्ण हुआ।
उत्थानिका-आगे कहते हैं कि संसारका कारण ज्ञानावरण आदि द्रव्य कर्म है और इस द्रव्य कर्मके बंधका कारण मिथ्यादर्शन व राग आदि रूप परिणाम है
आदा कम्ममलिमसो परिणाम लहदि कम्मस जुत्त । तत्तो सिलिसदि कम्म तम्हा कम्मतु परिणामो ॥३०॥ आत्मा कर्ममलीमसः परिणामं लभते कर्मसयुक्तम् । ततः श्लिष्यति कर्म तस्मात् कर्म तु परिणामः ॥३०॥
अन्वय सहित सामान्यार्थः-(आदा कम्ममलिमसो) आत्मा द्रव्य कर्मोसे अनादि कालसे मैला है इसलिये ( कम्मसंजुत्तं परिणाम ) मिथ्यात्व आदि भाव कर्म रूप परिणामको (लहदि) प्राप्त होता है । ( तत्तो ) उस मिथ्यात्व आदि परिणामसे (कम्मं सिलिसदि ) पुद्गल कर्म जीवके साथ वध जाता है ( तम्हा ) इसलिये (परिणामो) मिथ्यात्व व रागादि रूप परिणाम (कम्मं तु) ही भाव कर्म है अर्थात् द्रव्य कर्मके वन्धका कारण है।
विशेषार्थ-निश्चय नयसे यह दोष रहित परमात्मा शुद्ध बुद्ध एक स्वभाव वाला होनेपर भी व्यवहार नयसे अनादि कर्म बन्धके कारण कर्मोंसे मैला होरहा है। इसलिये कर्म रहित परमात्मासे विरुद्ध कर्म सहित मिथ्यात्व वरागादि परिणामको प्राप्त होता है-इस परिणामसे द्रव्य कर्मोको बांधता है। और जब निर्मल भेद विज्ञानकी ज्योतिरूप परिणाममें परिणमता है तब कर्मोसे छूट जाता है, क्योंकि रागद्वेप आदि परिणामसे कर्म बंधता है। इसलियेराग आदि विकल्परूपः