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द्वितीय खंड।
[७९ रूपसे रहनेवाला है, गुण द्रव्यके आश्रय अन्य गुण रहित नित्य ठहरनेवाला है, पर्याय गुणका विकार क्षणभंगुर एक समय मात्र ठहरनेवाला है इस तरह इन तीनोंके स्वरूपमें परस्पर भेद है, प्रदेशभेद नहीं है । इसलिये इन तीनोंमें भी एकत्व और अन्यत्व है । और जब हम इन द्रव्यकी सत्ताके साथ एकताका विचार करते हैं तब प्रदेशोंकी अपेक्षा एकता है किन्तु स्वरूपकी अपेक्षा अन्यपन है। द्रव्य गुणी है सत्ता गुण है-द्रव्य गुणपर्यायवानपनेका बोधक है सत्ता मात्र अस्तिपनेको बताती है । इसी तरह गुणकी सचाके साथ सत्ताकी प्रदेशापेक्षा एकता है परन्तु स्वरूपकी अपेक्षा भिन्नता है। इसी तरह पर्यायकी सत्ताके साथ सत्ताकी प्रदेशापेक्षा एकता है परन्तु' स्वरूपकी अपेक्षा भिन्नता है। जैसे मोतीकी सफेदी, सूतकी सफेदी, हारकी सफेदी इन तीनोमे अलग अलग एकत्व तथा अन्यत्व है जैसे मोतीका सफेदीके साथ प्रदेशभेद नहीं है इससे एकता है परन्तु नाम व प्रयोजनादिसे भेद है यही अन्यत्र है इसी तरह हारकी सफेदी व सुतकी सफेदीमें एकत्व और अन्यत्व जानना चाहिये । ऐसे ही सिद्धात्माकी सत्ता, केवलज्ञानादि गुणोकी सत्ता, सिद्धावस्थाकी सत्ता इन तीनोमें अलग २ एकत्व और अन्यत्व सिद्ध होसक्ता है । जैसे सिद्धात्माका और सत्ताका प्रदेशं भेद न होनेसे एकत्व हैं परन्तु संज्ञा आदिसे भेद है इससे अन्यत्व है इसी तरह ज्ञानादि गुण तथा सिद्ध पर्यायके साथ सत्ताका एकत्व और अन्यत्व जानना चाहिये । यहां यह बात समझ लेनी कि यद्यपि एक गुणमें दूसरा गुण नहीं रहता है तथापि जब द्रव्यमें सर्व ही सामान्य तथा विशेष गुण द्रव्यके सर्वस्वमें व्यापक हैं