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________________ . विषयसूची। २० २.. " .. ... १५ गाथाएं नमस्कार २चारिषवर्णन ३ तीन प्रकार उपयोग ९-१० ४ इन उपयोगोंके फल . ' . ૧૧-૧૨ ५ शुद्धोपयोगका फल .... ... ... ... १० शुद्धोपयोगी पुरुष ... ... ७ सर्वज्ञ स्वरूप... ... .. ८ स्वयंभू स्वरूप ... ... ... .... ५ परमात्माके उत्पाद व्यय प्रौव्य कथन........१७-१८ १० सर्वज्ञके श्रृद्धानसे सम्यकदृष्टी होता है ... १९ ११ अतीन्द्रिय ज्ञान व सुख ... ... ... २० १२ केवलीके भोजनादि नहीं .. ... ... . १३ केवलज्ञानको सर्व प्रत्यक्ष है ... ..."...२२-२३ १४ आत्मा और शान व्यवहारसे सर्वव्यापक है ...२४-२८ • ज्ञान ज्ञेय परस्पर प्रवेश नहीं करते ... ...२९-38 १६ निश्चय और व्यवहार केवली कथन ... ...३४-३७ १. भात्माको परेमानमें तीनकालका ज्ञान ...३८-४२ १८ शान बंधका कारण नहीं है किन्तु रागादि बंधके कारण है। केवलोके धर्मोपदेश ५ . विहार इच्छापूर्वक नहीं ... ... ... ...४३-७ १९ केपलज्ञान ही सर्वज्ञान है ... ... ...४८-५२ २० शानप्रपंचका सार ... ... ... ... .५३ २१ नमस्कार ... ... ... ... ..... ... ५४ ११५ १४७ १६३ १८४ ૨૨. २०७
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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