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________________ गाथाएं २२ अताद्रिय ज्ञान तथा मुख उपादेय है... ...५५-५६ २०६ २७ इंद्रियज्ञान तथा मुख त्यागने योग्य है... ...५७-६० २४ केवलज्ञान ही सुख है ... ... ... ...६१-६४ . २२६ २५ इंद्रियसुख दुःखरूप है ... ... ...६५-१६ . २४० २६ मुक्तात्माके देह न होते हुए भी सुख है ...६७-६८ २४८ २७ इद्रियों के विषय भी मुसके कारण नहीं है ...६९-७० २५५ २८ सर्वज्ञ नमस्कार ... ... ... ... ...७१-७२ २६१ २९ शुभोपयोगका स्वरूप ... ... ... ... ७३ ३० शुभोपयोगसे प्राप्त इन्द्रिय मुख दुःखरूप है...७४-७५ २१ शुभोपयोग अशुभोपयोग स्मान है ... ... ७६ ३२ पुगसे इन्द्रादिपद होते है ... ... ... .. ३ पुष तृष्णा पैदाकरताहै , दुःस्वका कारण है... ... ... ... ... ...७८.७९ ३४ इंद्रिय सुख दुःखरूप है... ... ... ... . ३५ पुण्य पाप समान है ... ... ... ... १ २९८ ३६ शुद्धोपयोग संसार दुःख क्षय करता है ... ....२' ३० ३७ शुद्धोपयोग बिना मुक्त नहीं होसक्ती... ....3-८४ 303 ३८ परमात्माका यथार्थ ज्ञाता आत्मज्ञानी है ...८५-८६ ३९ प्रमाद चोरसे बचनाचाहिये ... ... ... . ३१४ ४० नमस्कार योग्य ... ... ... ... ...८८-८९ ४१ मोहका स्वरूप व भेद... ... ... ४२. रागद्वेष मोहरा क्षयकरना चाहिये ... ४३ शाखस्वाध्यायकी आवश्यक्ता ... ... ४४ अर्थ किसे कहते है ... ... ... ४५ जैनका उपदेश दुर्लभ है ... ... ... ९५ ३४६ ४६ मे विज्ञानसे मोह क्षय होता है .... ४७ जिन भागमसे भेदविज्ञान' होता है...".... १७ ५१ 3०९
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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