________________
Wwwww
.श्रीमवचनसार भाषार्टीका। [३७२ समयसार मागम परम, नियमसार सुखदाय । भाषाटीका रच करो, निन अनुभूति उपाय ॥ ११ ॥
आनन्द अनुभव लेख बहु, और स्वसमरानन्द । लिखे स्व अनुभव कारणे, भोग्यो निज मानन्द ॥ १२ ॥ पूज्यपाद स्वामी रचित, शलकसमाघि सार । इष्ट उपदेश महानकी, टीका रची सम्हार ।। १२ । इत्यादिक कुछ अंथको, पुद्गल शब्द मिलाय । निज मति परखन कारणे, लिखे परम हरपाय ॥ १४ ॥ विक्रम संवत उनमसी, उचितसमें नाय । कलकत्ता नगरी रह्यो, अवसर वर्षा पाय ॥ १५ ॥ व्यापारी नई बहुत हैं, धन कण बुद्धि पूर। आकुलता सागर बनो, उधम मस्पूर ॥ १६ ॥ बृटिश राज्य मा देशमें, द्वादश लख समुदाय । करत सुनिज निज कार्यको, पाप पुण्य फल पाय ॥ १७ ॥ कई सहस नैनी तहां , लक्ष्मी उद्यम लाग । रहत करत कुछ भक्ति मी, निन मतकी घर राग ॥ १८ ॥ श्री जिन मंदिर चार तह, एक चैत्य गृह नान । नित प्रति पूजा होत नई, शास्त्र पठन गुणवान ॥ १९॥ विहार पंडित तहां, श्री जयदेव प्रवीण । शास्त्र पठनमें विज्ञ हैं, निन अनुभवमें लीन ॥ २० ॥ संस्थत विद्या सार घर, झम्मनलाल श्रीकाल। और गजाधरलाल हैं, नयविद् मक्खनलाल ॥ २१ ॥