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३७.] श्रीप्रवचनसार भाषाटीका!
भाषाकारका परिचय ।
दोहा । श्री कुंदकुंद भगवान कृत, प्राकृत ग्रंभ महान । तत्त्वज्ञानसे पूर्ण है, परमानंद निधान ॥ १ ॥ ताकी संस्कृत वृत्ति यह, कर्त्ता श्री जयसेन । परमज्ञान रस दान है, सहनहि बोध सुदेन ॥२॥ ताकी भाषा देख नहि, उपगो ऐसामाव । भाषामें कर दीजिये, प्रगटे ज्ञान स्वगाव ॥ ३ ॥ अग्रवाल शुम वंशमें, गोयल गोत्र मंझार । मंगलसेन ज्ञानी महा, करत धर्म विस्तार ॥ ४ ॥ पुत्र हैं मक्खनलालजी, तिनका मैं हूं पुत्र । 'सीतल नाम प्रख्यात है, सुखसागर भी कुत्र ॥ ५ ॥
जन्म लक्ष्मणापुरीमें, अवध प्रान्त सुखकार । पढ़ विद्या इंग्लिश सहित खुलो हृदय संसार ॥ ॥ विक्रम पैतिस उणविसा, जन्म वैश्य गृहधार । गृह व्यापार हटाय सब, वत्तिस वरष मंझार ॥ ७ ॥ गृहत्यागी श्रावक दशा, सुखसे वीतत सार । निज आतम भनुभव रहे, नित निन हृदय मंझार ॥ ८ ॥ जिन वाणी अम्यासमें, अध्यातम एक रत्न । .ग्नि चीन्हा निज प्रेमसे, क्रिया योगका यत्न ॥ ९॥ ताकी रुची की प्रेरणा, भई अपार महान । मात्म धर्म गृहि धर्म वर, लिखे ग्रंथ गुणखान ॥१०॥