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श्रीप्रवचनसार भाषाटीका। [३६५ दूसरी गाथा है इस तरह दो स्वतंत्र गाथाएं हैं । उस निश्चय धर्मधारी तपस्वीकी नो कोई भक्ति करता है उसका फल कहते हुए, "जो तं दिवा" इत्यादि गाथाएं दो हैं, इस तरह दो अधिकारोंसे व प्रथक् चार गाथाओंसे सब एकसौ एक गाथाओंसे यह ज्ञानतत्वप्रतिपादका नामका प्रथम महा अधिकार समाप्त
समाप्तोऽयं ग्रथः