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श्रीमवचनसार भाषाका [ ३२७ है | इस रागद्वेषमें चार कषाय और नौ नोकषाय गर्भित हैं। ,
लोभ, माया कषाय और हास्य, रति, स्त्रोवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद से पांच नोकषाय ऐसे ७ चारित्रमोहके भेदोंको राग तथा क्रोध, मान, कषाय और भरति, शोक, भय, जुगुप्ता ये चार नोकपाय ऐसे ६ चारित्र गोहळे भेदोंको द्वेष कहते हैं । इन्हीं रागद्वेषके चार भेद समझनेसे तेरह प्रभार के भेद मनन्तानुबन्धो, आदि चार भेदरूप फेलने ५२ बावन प्रकारके भाव होसते हैं । यद्यपि सिद्धांतमें कषायरूप चारित्र मोहनीयके २५ पचीस भेद कहे हैं तथापि चार कषायके सोलह भेद जैसे सिद्धांतमें कहे हैं, उनको लेकर और नौ नोकषाय भी इन १६ रूपायोंकी सहायता पाकर काम करते हैं इसलिये इनके भी छतीस भेद होनाते हैं। इस तरह बावन भेद जानने चाहिये। दर्शनमोहके भी तीन भेद हैं-मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व या मिश्र और सम्यग्यकृति मिथ्यात्व | जो सर्वथा श्रद्धान विगाड़े वह मिथ्यात्व है, जो सच्चे झूठे शृद्धानको मिश्र रूप रक्खे वह मित्र है । जो सच्चे शृद्धानमें मक या अतीचार लगाये वह सम्यक्त प्रकालि है। इस तरह मोहके सब पचपन भेद होसक्के हैं।
इस मोहको मात्माका विरोधी, सुख शांतिका नाशक सम. ताफा घातक व संसारचक्रमें भ्रमण करनेवाला जानकर मुमुक्षु जीवको उचित है कि मह निम शात्माके अपने ही शुद्धोपयोग रूप साम्यभावको उपादेय मान उसीके लिये पुरुषार्थ करे । संसारमें दुःखी करनेवाला एक मोह है जैसा श्री योगीन्द्रदेवने अमृताशीतिमें कहा है: