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१९४] श्रीमवचनसार भाषाटीका । यहां ज्ञाता और ज्ञेय सम्बन्ध लेना चाहिये जिसने ज्ञाताको नाना उसने सर्थ ज्ञेयोंको जाना ही। यहांपर शिप्यने प्रश्न किया कि आपने यहां यह व्याख्यान किया सिमात्माको जानते हुए सर्वका जानपना होता है और इसके पहले सुत्रमें कहा था कि सबके जाननेले मात्माका ज्ञान होता है। यदि ऐसा है तो जब छमस्थोंको सर्वका ज्ञान नहीं है तब उनको आत्मामा ज्ञान में होगा यदि उनको मात्मा का ज्ञान न होगा तो उनके आत्माकी भावना करो दोगी ! यदि मात्माकी भावना न होगी तो :नको चाज्ञानको उत्पत्ति नहीं होगी। ऐमा होनेसे कोई केवलज्ञानी नदी होगा। इस मंशाका समाधान करते हैं कि परोक्ष प्रमाणरूम श्रुत ज्ञानसे सर्व पदार्थ माने जाते हैं। यह कैसे, सो कहने हैं। छमास्थों को भी लोक और अलोकका ज्ञन व्याप्तिज्ञान रूपसे है । वह विज्ञान परोक्षरूपसे केवलनानके विषयको ग्राण करनेवाला है इलिये वि.स) अपेक्षासे आत्मा ही कहा जाता है। अथवा दृ मा संक्षेप लाम वा त्या तुमसे आत्माको मन । और फिर उसकी भावना करते हैं । इसी रागद्वेषादि विकल्पोंसे रहित स्वसंवेदनज्ञानकी भवनाके द्वारा फेवरज्ञान का होनाता है । इसमें कोई दोष नहीं है।
मा -इस गाथामें भी भाचार्यने केवलज्ञानकी महिमाको और आत्माके ज्ञान स्वभावशे प्रगट किया है। ज्ञान म माझा स्वभाव है । जो सबको जाने उसे ही ज्ञान कहते हैं। अर्थात महा सामान्यज्ञान सर्व ज्ञेयोंको जाननेवाला है। भिन्न २ पदार्थोके ज्ञानको विशेष ज्ञान कहते हैं । ये विशेष ज्ञान सामा