________________
marwaimarwanamakwane
श्रीमवचनसार भापारीका। [१९३ अन्वय सहित विशेषार्थ-(नदि) यदि कोई आमा (एक अणंतपजयं दव्वं) एक अनन्तपर्यायोंके रखनेवाले द्रव्यको (ण विमाणदि) निश्चयसे नहीं जानता है (सो) वह आत्मा (कथं) किस तरह (सम्शणि गणताणि दव्यगादाणि) सर्व अनन्त द्रव्यसमूहको (जुग) एक समयमें (नाणादि) जान सक्ता है ? अर्थात् किसी तरह भी नहीं नान सक्ला । विशेष यह है कि मात्माका लक्षण ज्ञान स्वरूर है । सो अखंडरूपसे प्रकाश करनेवाला सर्व जीवों में साधारण महामान्य रूप है । वह महासामान्य ज्ञान अपने ज्ञानमयो अन्त विशेषोंमें व्यापक हैं । वे ज्ञान विशेष अपने विपरूप ज्ञप पदार्थ ने अनन्त द्रव्य और पर्याय है उनको जान नेवाले ग्रहण करनेवाले हैं। जो कोई अपने आत्माको अखडररूपसे प्रकाश घरते हुए महा सामान्य स्वभावरूप प्रत्यक्ष नहीं जानता है बद पुरुम पकाशमान महामामायके द्वारा जो बनत ज्ञानके विशेष व्याप्त हैं, उनके विषयरून मो मनन्त द्रा और पर्याय हैं उगम कसे मानसा है ? अर्थात् किसी भी तरह नहीं जान सका है। इससे यह सिद्ध हुआ कि नो भाने आत्माको नहीं नानता है वह नशो नहीं जानता है। ऐसा ही कहा हैएको भायः सर्व भाव स्वभावः सर्व भावा एक भाव भावः एने भावस्तरवता येन बुद्धः स भावास्तवतस्तेन बुद्धाः ॥
भाव यह है कि एक भाव सर्व भावोंका स्वभाव है और सर्व मान एक मायके स्वभाव हैं | जितने निश्चयसे-यथार्थ रूपसे . एक भावको नाना उसने यथार्थ पसे सर्व भावोंको जाना है।