________________
१९२ ]
श्रीप्रवचनसार भाषाटीका ।
भी क्षयोपशम ज्ञानमें दोनोंके विस्तारको स्पष्टपने सर्व उपस्थित पदार्थ सहित जाननेकी शक्ति नहीं है। चारों ही ज्ञान बहुतकम पदार्थो को जानते हैं । यह तो क्षायिकज्ञान जो अतीन्द्रिय और स्वाभाविक है उसीमें शक्ति है जो सर्व क्षेत्रकी व सर्वकालकी सर्व द्रव्योंकी सर्व पर्यायोंको जान सके । अतएव यह सिद्ध है कि जो सर्व तीनकाल व तीन लोक पर्याय सहित द्रव्योंको नहीं जान सक्का वह एक द्रव्यको भी उनकी अनंत पर्याय सहित नहीं जान सक्ता । मात्र केवलज्ञान ही जानसक्ता है। जैसे वह सर्वको जानता है वसे वह एकको जानता है ।
ऐसी महिमा केवलज्ञानकी जानकर कि उसके प्रगट हुए विना न हम पूर्णपने अपने आत्माको जानसक्के न हम एक किसी अन्य द्रव्यको जानसक्ते | हमको उचित है कि इस निर्मल केवलज्ञानके लिये हम शुद्धोपयोग या साम्यभावका अभ्यास करें ।
उत्थानका- आगे यह निश्चय करते हैं कि जो एकको नहीं जानता है वह सर्वको भी नहीं जानता है । दव्यं अनंतपजयमेकमणाणि दव्वजादाणि । ण विजाणदि जदि जुगवं कध सो सव्वाणि जाणादि ॥ ४९ ॥
द्रव्यमनंतपर्यायमेकमनन्तानि द्रव्यजातानि ।
न विजानाति यदि युगपत् कथं स सर्वाणि जानाति ॥ ४९ ॥ सामान्यार्थ - जो आत्मा अनन्त पर्यायरूप एक द्रव्यको नहीं जानता है वह आत्मा किस तरह सर्व अनंत द्रव्योंको एक समय में जान सक्ता है ?