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१८६] श्रीप्रवचनसार भापार्टीका । हैं नितने पुद्गल आदि पांच द्रव्य हैं वे अचेतन हैं। तथा न केवल मूर्तीक ही हैं न मात्र अमूर्तीक ही हैं किंतु पुद्गल सब मूर्तीक हैं, शेष पांच द्रव्य अमूर्तीक हैं। विचित्र शब्दसे यह बताया है कि जीव जगतमें एक रूप नहीं हैं कोई मुक्त हैं कोई संसारी हैं, संसारियोंमें भी चतुर्गति रूपसे मिन्नता है । एक गतिमें भी अनेक विचित्र रचना जीवोंके शरीरादिककी उनके भिन्न २ कर्मोके उदयसे हो रही हैं। केवलज्ञानमें यह शक्ति है कि सर्व समाति विजातीय द्रव्योंको उनके विचित्र भेदों सहित जानता है । उस ज्ञानमें निगोदसेले सिक पर्यंत सर्व जीवोंका स्वरूप अलग २ उनके आकारादि भिन्न १ दिख रहे हैं वैसे ही पुद्गल द्रव्यकी विचित्रता भी झलक रही है। परमाणु और स्कंध रूपसे दो भेद होनेपर भी सचिक्कणता व रक्षताके मशोंकी भिन्नताके कारण परमाणु अनंत प्रकार के हैं। दो परमागुओंके स्कंधको मादि लेकर तीनके, चारके, इसी र संख्यातके असंख्यातके व अनंत परमाणुओंके नाना प्रकार के स्कंध बन जाते हैं जिनमें विचित्र काम करनेकी शक्ति होती है। उन सर्व स्कंधोंको व परमाणुओंको केवलज्ञान भिन्न २ जानता है। इसी तरह असंख्यात कालाणु, एक अखंड धर्मास्तिकाय एक अखंड अधर्मास्तिकाय तथा एक अखंड आकामास्तिकाय ये सब द्रव्य जिनमें सदा स्वाभाविक परिणमन ही होता है उस निर्मलज्ञानमें अलग २ दिख रहे हैं। प्रयोजन यह है कि यह विचित्र नाना प्रकार व जातिका जगत 'अर्थात् जगतके सर्व पदार्थ ज्ञानमें प्रगट हैं । कालापेक्षा भी वह ज्ञान हरएक द्रव्यकी सर्वभूत, भवि