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७२ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखेनामक साध्य को मानता है । अर्थात् यहां छाया के अविरुखकारण छत्र की मौजूदगी है, इसलिये यह हेतु अविरुद्धकारणोपलब्धिहेतु, कहा जाता
संस्कृतार्थ-'प्रस्त्यत्र छाया उत्रात्' अत्र छत्रनामककारणहेतुः छायानामकसाध्यं सानोति । अर्थादत्रच्छायायाः अविरुद्ध कारणस्य छत्रस्योपलब्धि विद्यते । अतोऽयं हेतुः अविरुद्धकारणोपलब्धिहेतुः कथ्यते ॥६॥
अविरुद्धपूर्वचरोपलब्धि (पूर्वचरहेतु) का उदाहरणउदेष्यति शकटं कृतिकोदयात् ॥६४॥
अर्थ-एक मुहूर्त के बाद रोहिणी का उदय होगा, क्योंकि कृतिका का उदय हो रहा है। यहां रोहिणी के उदय से पूर्व होने वाले कृतिका के उदय की मौजूदगी है । अर्थात् यहां कृतिकोदयरूपपूर्वचरहेतु शकटोदय की भावितारूप साध्य को साधत्ता है। इसलिये यह हेतु 'अविरुद्धपूर्वचरोपलब्धि कहा जाता है ।।६४॥
संस्कृतार्थ-'उदेष्यति शकटं कृतिकोदयाद् पत्र कृतिकोदयरूपपूर्वचरहेतुः शकटोदयभावितारूपसाध्यं साध्नोति । अर्थादत्र शकटोदयभावितायाः पविरुद्धपूर्वचरस्य कृतिकोदयस्योपलब्धि विद्यते । अतोऽयं हेतुः 'अविरुद्धपूर्वचरोपलब्धिहेतुः' निगद्यते ॥६४॥
अविरुद्ध उत्तरचरोपलब्धि (उत्तरचरहेतु) का उदाहरणउत्गाद भरणिः प्राक्तत एव ॥६५॥
अर्थ--एक मुहूर्त के पहले ही भरणि का उदय हो चुका है, क्योंकि कृतिका का उदय हो रहा है। यहां कृतिकोदयनामक उत्तरचरहेतु भरव्युदयभूततानामक साध्य को साधता है। अर्थात् यहां भरणि