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श्रीमाणिक्यनम्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे -
संस्कृतार्थ दृष्टौ श्रन्तौ साध्यसाधनलक्षणो धर्मो अन्वयमुखेन व्यतिरेकमुखेन वा यत्र सः दृष्टान्तः । स हि द्विविधः श्रन्वयदृष्टान्तो व्यतिरेकदृष्टान्तश्चेति ॥ ४३ ॥
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अन्वयदृष्टान्तस्य लक्षणम्, अन्वयदृष्टान्त का लक्षण - साध्यध्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वय दृष्टान्तः ॥४४॥
अर्थ - जिसमें साध्य के साथ साधन की व्याप्ति (अविनाभाव ) दिखाई जाती है उसे अन्वयदृष्टान्त कहते हैं ॥ ४४ ॥
संस्कृतार्थ -- साधन सद्भावे साध्यसद्भावो यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वयदृष्टान्तः ।।४४।।
विशेषार्थ - श्रन्वयव्याप्ति दिखाकर जो दृष्टान्त दिया जाता है उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं । जहाँ-जहाँ धूम होता है. वहीं वहाँ अग्नि होती है, इस प्रकार साधन का सद्भाव दिखाकर साध्य का सद्भाव दिखाना अन्वयव्याप्ति है ॥ ४४ ॥
व्यतिरेकदृष्टान्तस्य स्वरूपम्, व्यतिरेकदृष्टान्त का स्वरूप --- साध्याभावे साधना मावो यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः ।
अर्थ - जिसमें साध्य का प्रभाव दिखाकर साधन का प्रभाव दिखाया जाता है उसे व्यतिरेकदृष्टान्त कहते हैं ॥४५ ॥
संस्कृतार्थ -- साध्याभावे साधनाभावो यत्र प्रदर्श्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः प्रोच्यते ।।४५ ॥
विशेषार्थ व्यतिरेकव्याप्ति दिखाकर जो दृष्टान्त दिया जाता है उसे व्यतिरेकदृष्टान्त कहते हैं । जहाँ-जहाँ पग्नि नहीं होती वहाँ-वहाँ धूम भी नहीं होता, इस प्रकार साध्य के प्रभाव में साधन का प्रभाव दिखाना व्यतिरेकव्याप्ति है ।
उपनयस्य लक्षणम्, उपनय का लक्षण
तोरुपसंहार उपनयः ॥ ४६॥
अर्थ - पक्ष में साधन के दुहराने के उपनय कहते हैं ||४६ ||