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श्रीमाणिक्यनन्दस्वामिविरचिते परीक्षामुखे
अर्थ - विवादग्रस्त होने के कारण पूर्वोक्त वचन श्रागमाभास है । क्योंकि प्रागम प्रमाण का श्रङ्ग है और प्रमाण अषिसम्बादी होना श्रावश्यक है ।
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संस्कृतार्थ - श्रागमः प्रमाणाङ्गं विद्यते । प्रमाणेन चाविसम्वादिना भाव्यम् । अतो विसम्वादग्रस्तत्वात्पूर्वोक्तवचनमागमाभासो विद्यते ॥ ५४॥
प्रमाणसंख्याभास का वर्णन-
प्रत्यक्ष सेवकं प्रमाणमित्यादि संख्या भासम् ॥ ५५ ॥
अर्थ - प्रत्यक्ष ही एक प्रमाण है इत्यादि ५७ वें सूत्र में कथित सर्व ही संख्याभास हैं ।
संस्कृतार्थ - प्रत्यक्षमेवैकं प्रमाणमित्यादि संख्याभासम् ।
प्रत्यक्षमात्रप्रमाण के संख्याभासत्व का स्पष्टीकरणलोकायतिकस्य प्रत्यक्षतः परलोकादिनिषेधस्य परबुद्ध्यादेश्चासिद्धे रतद्विषयत्वात् ॥ ५६ ॥
अर्थ - चार्वाकमती का प्रत्यक्ष ही एक प्रमाण संख्याभास है कि अनुमानादि प्रमाण बिना केवल आदि का निषेध और पर की बुद्धि आदि की सिद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि वे प्रत्यक्ष के विषय नहीं हैं। और ऐसा नियम है कि जो जिसको विषय नहीं करता, वह उसका निषेध तथा विधान भी नहीं कर सकता।
मानना इसलिये प्रत्यक्ष से परलोक
संस्कृतार्थ —— चार्वाकस्य प्रत्यक्षमात्रप्रमाणस्य स्वीकरणमतः संख्याभासो विद्यते यदनुमानादिप्रमाणं बिना प्रत्यक्षमात्रेण परलोकादिनिषेधस्य परबुद्ध्यादेश्व सिद्धिर्नो भवेत्, यतस्तौ प्रत्यक्षविषयों न स्तः । श्रथ चायं नियमो यत्- 'यद्यत् न विषयीकरोति तत्तस्य विधि, निषेधम्वा तु नो शक्नुयात् ॥५६॥