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पञ्चतंत्र
किया। विवाह के बाद उसने अन्तःपुर के लोगों के साथ राजा को भी अपने घर बुलाकर उनकी सेवा की। उस दिन राजा के घर में झाडू देने वाला गोरंभ नाम का राज-सेवक भी उसके घर आया था, पर उसे अनुचित स्थान पर बैठा हुआ देखकर दंतिल ने उसे गरदनिया देकर बाहर निकाल दिया। ___उस दिन गोरंभ आहें भरता रहा और रात में भी अपने अपमान के कारण न सो सका। 'कैसे मैं उस व्यापारी के ऊपर ने राजा की कृपा-दृष्टि दूर करूं,' यही विचार करता रहता था। फिर उसने सोचा, इस प्रकार वृथा शरीर सुखाने से क्या फायदा ! मैं दंतिल का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । अथवा ठीक ही कहा है
"जो नुकसान पहुंचाने में असमर्थ है, ऐसे बेशर्म मनुष्य के क्रोध करने से क्या लाभ ? भूनते समय फड़फड़ाता चना क्या भाड़
फोड़ सकता है ?" एक समय सबेरे के पहर जब राजा अर्ध-निद्रा में पड़े थे , उसी समय खाट के पास सफाई करते हुए गोरंभ बोला , “अरे! दंतिल की बदमाशी तो देखो कि वह महारानी का आलिंगन करता है।" यह सुनते ही राजा उतावली के साथ उठ बैठा और उससे पूछा , “गोरंभ, दंतिल ने देवी का आलिंगन किया, क्या यह सच है ?" गोरंभ ने कहा ,“ जुए के प्रेम से रतजगा करने से मुझे जबरदस्त नींद आ गई थी, इसलिए मैं नहीं जानता कि मैंने क्या कहा?" डाह के मारे राजा ने अपने से कहा, " गोरंभ मेरे घर में निःसंकोच घूमता रहता है, उसी प्रकार दंतिल भी। तो शायद गोरंभ ने उसे देवी को आलिंगन करते हुए देखा हो और यह देखकर उसके मुंह से ऐसी बात निकली हो। .. कहा है कि
"मनुष्य दिन में जिसकी इच्छा करता है, देखता है या करता है वही
बात परिचय के कारण वह स्वप्न में बोलता है अथवा करता है । और भी " मनुष्यों के मन में जो भी शुभ और अशुभ अथवा पाप होता है