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मित्र भेद तू विश्वासपूर्वक चल, पर राजा की कृपा प्राप्त कर चुकने के बाद तुझे मेरे साथ शर्त के अनुसार व्यवहार करना होगा। शेखी में आकर अपने बड़प्पन में न भूल जाना। मैं भी मंत्री बनकर तेरे साथ सलाह मशविरे के साथ राज-काज चलाऊंगा । ऐसा करने से हम दोनों राज्य-लक्ष्मी भोग सकेंगे। क्योंकि
"शिकारी की तरकीब से मनुष्यों के वश में वैभव आता है । एक राजाओं को हंकाता है और दूसरा उसे पशुओं की तरह मारता है। और भी "राजा के पास के उत्तम , मध्यम और अधम मनुष्यों का जो शेखी के मारे सम्मान नहीं करता,वह राजा का प्रिय पात्र होने पर
भी दन्तिल की तरह पदच्युत हो जाता है।" संजीवक ने कहा ," यह किस तरह ?" दमनक कहने लगा--
दंतिल. और गोरंभ की कथा "इस पृथ्वी पर वर्द्धमान नाम का एक नगर है। वहां तरह-तरह के मालों का मालिक, और पूरे शहर का अगुवा (नगर सेठ) दंतिल नाम का सेठ रहता था। उसने नगर-राज्य का काम करते हुए नगरवासियों और प्रजा को प्रसन्न किया। बहुत क्या कहें, उसके समान चतुर न तो कोई देखा गया, न सुना गया। अथवा ठीक ही कहा है--
"राजा का हित करने वाला लोगों का द्वेष-पात्र बन जाता है, तथा जनपद का हित करने वाला राजा द्वारा त्याग दिया जाता है। इस तरह इन दोनों महाविरोध की स्थिति होने पर, राजा
और प्रजा दोनों का काम करने वाला दुर्लभ होता है।” इस तरह कुछ समय बीतने पर दंतिल की लड़की का विवाह हुआ। उस समय उसने नगर के रहने वालों तथा राजा के समीपवतियों को सन्मान के साथ बुलाया और उन्हें भोजन कराके तथा वस्त्रादि देकर उनका सत्कार