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पञ्चतंत्र
सकते । फिर उसने क्या कहा ?'' दमनक ने उत्तर दिया, "मैंने उससे कहा--यह वन दुर्गा के वाहन पिंगलक के अधिकार में है, इसलिए तुम उनके प्रिय अतिथि हो । तुम्हें पिंगलक के पास जाकर भाई-चारे के साथ एक साथ खाना-पीना व्यवहार वगैरह करते हुए रहकर समय बिताना चाहिए। उसने भी यह सब बात मानकर कहा है कि महाराज से तुझे मुझे अभयदान दिलवाना होगा। इस विषय में आपको जो अच्छा लगे कीजिए।" यह सुनकर पिंगलक ने कहा, “साधु, पंडित मंत्री साधु ! तूने मरे दिल से सलाह लेकर ही ऐसी बात उससे कही है तो मैं उसे अभयदान देता हूँ, पर मेरे लिए उससे भी अभयदान माँगकर तू उसे जल्दी यहां ला। यह बात ठीक ही कही है,
''अन्दरूनी बल वाले , सीधे ,अछिद्र तथा अच्छी तरह से परीक्षा किए हुए मंत्री, जिस प्रकार खम्भे महल को खड़े रखते हैं, उसी तरह राज्य को खड़ा रखते हैं ।
और भी "जिसके साथ लड़ाई हो गई हो उसी के साथ सुलह करने में
मंत्रियों की बुद्धि प्रकट होती है और सन्निपात ज्वर के • इलाज में वैद्य की बुद्धि प्रकट होती है ; बाकी तो मामूली
हालत में कौन अपनी बुद्धिमत्ता नहीं दिखाता ?" दमनक ने उसे प्रणाम किया और संजीवक के पास जाते हुए खुशी से सोचा, "अहा ! स्वामी मेरे ऊपर प्रसन्न होकर मेरी वाणी से वश में हो गए हैं। इसलिए मुझसे बढ़कर धन्य कोई दूसरा नहीं हो सकता। कहा भी है--
"जाड़े में आग अमृत के समान है, प्रियजनों का दर्शन भी .. अमृत के समान है , राज़-सम्मान भी अमृत के समान है तथा
खीर का भोजन भी अमृत के समान है।" बाद में संजीवक के पास पहुँचकर दमनक ने विनयपूर्वक कहा, "हे मित्र ! तेरे लिए मैंने महाराज से अभयदान माँग लिया है। इसलिए