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"बुद्धि से जो काम बनता है वह शस्त्रों, बड़े हाथियों, घोड़ों, और पैदल फौज से नहीं बनता ।"
मित्र-भेद
पिंगलक ने कहा, “अगर ऐसी बात है तो मैंने तुझे मंत्री बनाया । आज से अनुग्रह-निग्रह इत्यादि काम तुझे ही करने हैं, ऐसा मेरा निश्चय
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इसके बाद दमनक ने जल्दी से संजीवक के पास जाकर उसे फटकारते हुए कहा, “चल चल रे दुष्ट बैल, तुझे महाराज पिंगलक बुलाते हैं । निःशंक होकर क्यों वृथा हंकारता है ?" यह सुनकर संजीवक ने कहा, “भद्र, यह पिंगलक कौन है ?" दमनक बोला, “क्या तू स्वामी पिंगलक को नहीं जानता ? जरा ठहर, इसका फल तुझे मिलेगा । देख, सब जीवों से घिरा हुआ वरगद के नीचे स्वामी पिंगलक नामक सिंह बैठा है ।" यह सुन अपनी जिंदगी खतम समझकर संजीवक को बड़ा विषाद हुआ। उसने कहा, “भद्र, आप सही कहने वाले और वाक्य-कुशल दिखाई देते हैं, अगर आप मुझे वहां जरूर ही ले जाना चाहते हैं तो आपको मुझे स्वामी से अभयदान दिलाकर उनकी कृपा प्राप्त करानी होगी।" दमनक ने कहा, " अजी तुमने ठीक ही कहा । यही नीति है । क्योंकि
" भूमि, समुद्र और पर्वत की सीमा पाई जा सकती है, पर राजा के मन की थाह कोई कभी नहीं जान सकता ।
तू तब तक यहीं खड़ा रह, जबतक मैं ठीक ठाक करके उनसे मिलकर फिर तुझे वहां ले जाऊं ।”
इस प्रकार व्यवस्था करने के बाद दमनक ने पिंगलक से जाकर इस तरह कहा, "स्वामी, वह कोई साधारण जीव नहीं है। वह भगवान शिव का वाहन वृषभ है । मेरे पूछने पर उसने कहा, “प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मुझे यमुना किनारे घास की टोंगियां चरने की आज्ञा दी है । बहुत कहने से क्या फायदा, भगवान ने मुझे खेलने के लिए यह वन दिया है ।" पिंगलक ने डर से कहा, “अब मैंने जाना कि पशुओं से भरे वन में घास चरने वाले पशु बिना देवता की कृपा के इस तरह निःशंक होकर हंकारते हुए कभी घूम नहीं