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पञ्चतन्त्र
"जिसका समान कुल और समान वित्त हो उसी के साथ विवाह
और मित्रता होनी चाहिए, असमानों के साथ नहीं।" कहा भी है --- "कुल, शील, पालने -पोसने की ताकत, विद्या, धन, शरीर, उम इन सात गुणों का विचार करके बुद्धिमान को कन्या का व्याह
करना चाहिए। और बातें सोचने की नहीं हैं। अगर उसे अच्छा लगे तो मैं भगवान सूर्य को बुलाकर उन्हें उसे दे दूं।" पत्नी ने कहा, "इसमें क्या दोष है ? ऐसा ही करिये।" मुनि ने सूर्य को बुलाया। वेद-मंत्रों के आमंत्रण-प्रभाव से सूर्य उसी समय आकर कहने लगे--"भगवन्! मुझे आपने क्यों बुलाया है ?" उन्होंने कहा, “यह मेरी कन्या है अगर यह आपको वरे, तो आप इसके साथ विवाह कर लीजिए। यह कहकर उन्होंने अपनी कन्या से कहा , “पुत्री! क्या तीनों लोक को रोशनी देने वाले भगवान् सूर्य तुझे भाते हैं ?" लड़की ने कहा, "ये बहुत जलाने वाले हैं। मैं इन्हें नहीं चाहती । इनसे भी अच्छे किसी को बलाइये।" उसकी बात सुनकर मुनि ने सूर्य से कहा , “भगवन् ! क्या आपसे भी कोई बड़ा है?" सूर्य ने कहा, "मुझसे बढ़कर बादल है जिससे ढका जाकर मैं दीख नहीं पड़ता।" बादल को बुलाकर मुनि ने कन्या से कहा, "पुत्री! मैं तुझे इन्हें देता हूं।" उसने कहा, "यह काला और जड़ है। इसलिए मुझे इससे बड़े किसी को दीजिए।" मुनि ने बादल से पूछा, "हे बादल ! तुझसे भी बढकर कोई है ?" बादल ने कहा, "मुझसे बढ़कर वायु है । वायु के थपेड़े खाकर मैं हजार टुकड़े हो जाता हूं।" यह सुनकर मुनि ने वायु को बुलाया और कहा "पुत्री! क्या यह वायु विवाह के लिए तुझे ठीक ऊंचता है?" उसने कहा, "तात! यह अत्यन्त चपल है, इससे भी बड़े किसी को बुलाइये।" मुनि ने कहा, “हे वायु! तुझसे भी बड़ा कोई है ?" पवन ने कहा, "मुझसे बढ़कर पहाड़ है, जिससे बलवान होने पर भी मैं रुक जाता हूं।" पहाड़ को बुलाकर मुनि ने कहा, "पुत्री! मैं तुझे इसे देता हूं।" उसने कहा, “तात! यह कठोर और अचल है, इसलिए मुझे किसी दूसरे को दीजिए।" मुनि ने पहाड़ से