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काकोलूकीय
२१७ पूछा, “पर्वतराज! क्या तुमसे बढ़कर कोई है ?" पहाड़ ने कहा, "मुझसे बढ़कर चूहे हैं जो अपनी ताकत से मुझे छेद डालते हैं।" इस पर मुनि ने चूहे को बुलाकर उसे दिखलाया और कहा, "पुत्री ! मैं तुम्हें इसे दूंगा। क्या चूहों का राजा तुम्हें भाता है ?" वह भी उसे देखकर और यह अपनी जाति का है यह मानकर हर्षित मन से बोली, “तात, मुझे चुहिया बनाकर इसे दे दीजिए जिससे मैं अपने जातिधर्म के अनुसार गृहस्थी चला सकू।" मुनि ने उसे अपने तपोवल से चुहिया बनाकर उसे दे दिया। ___इसलिए मैं कहता हूं कि, "सूर्य, मेघ, हवा और पर्वत जैसे पतियों को छोड़कर चुहिया अपनी जाति से मिल गई । अपनी. जाति छोड़ना बहुत मुश्किल है।" __ रक्ताक्ष की बातों का अनादर करते हुए वे अपने वंश के नाश के लिए उसे अपने किले में ले गए। ले जाने पर भीतर-भीतर हँसकर स्थिरजीवी ने सोचा
"स्वामी का भला चाहने वाले जिसने मुझे मार डालने की सलाह
दी वही इन सबों में अकेला नीति-शास्त्र का पंडित है।
अगर ये सब उसकी बात मानते तो उनकी कुछ भी हानि नहीं होती।" किले के दरवाजे पर पहुंचकर अरिमर्दन ने कहा, “अरे इस हितू स्थिरजीवी को भरपूर जगह दो।" यह सुनकर उसने सोचा, “मुझे इनको मारने की तरकीब सोचनी है , जो इनके बीच में नहीं साधी जा सकती । मेरी चालढाल देखकर वे भी सावधान हो जायंगे। इसलिए किले के दरवाजे पर रहकर मैं अपनी चाल साधूंगा।" ऐसा निश्चय करके उसने उल्लुओं के राजा से कहा, “देव, आपने जो कहा वह ठीक है, पर मैं भी नीतिज्ञ और आपका हितू हूं । यद्यपि मैं अनुरक्त और शुद्ध हूं फिर भी किले के बीच मेरा रहना ठीक नहीं। इसलिए मैं किले के फाटक पर रहकर आपके कमलरूपी चरणों की धूलि से अपना शरीर पवित्र करके आपकी सेवा करूंगा।" "ऐसा ही हो,” यह मानकर प्रतिदिन उल्लुओं के राजा के सेवक यथेष्ट आहार तथा उलूकराज के आदेश से बढ़िया-से-बढ़िया मांस स्थिरजीवी को देते थे।