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काकोलूकीय
२१५ कन्या के विवाह का समय बीता जा रहा है ?" उन्होंने जवाब दिया, “तुमने ठीक ही कहा--
"स्त्रियां पहले सोम, गंधर्व, अग्नि इत्यादि देवताओं द्वारा भोगी जाती हैं। इसके पश्चात् मनुष्य उनका भोग करता है, इसमें कोई
दोष नहीं।
" मोम स्त्रियों को पवित्रता देते हैं, गंधर्व उन्हें मीठी बातें सिखलाते हैं, अग्नि उन्हें शुद्धता देते हैं। इन सबसे स्त्रियां पापहीन हो जाती हैं। " रजोधर्म के पहले स्त्रियां गौरी कहलाती हैं , रजोधर्म के बाद रोहिणी । यौवन चिन्ह न होने पर वह कन्या कहलाती हैं और स्तनों के न होने पर नग्निका । " यौवन के लक्षण उत्पन्न होने पर सोम कन्या को भोगते हैं , स्तनों के उत्पन्न होने पर गंधर्व और ऋतुमती होने पर अग्नि ।" "इसलिए ऋतुमती होने के पहले ही कन्या का विवाह कर देना
चाहिए। आठ वर्ष में कन्या का विवाह प्रशंसनीय है। " यौवन के लक्षण होने पर पितरों के प्राक्-संचित पुण्य नष्ट हो जाते हैं, उसके पयोधर बाद के पुण्य हर लेते हैं। रति इष्टजनों का पुण्य हर लेती है और रज पितरों का पुण्य हर लेता है। " कन्या के ऋतुमती होने पर कन्या का अपनी इच्छा से दान कर
देना चाहिए। स्वायम्भुव मनु का कहना है कि नग्निका कन्या का विवाह कर देना चाहिए। " पिता के घर जिस कन्या को रजोधर्म हो जाता है वह
कन्या विवाह योग्य नहीं होती; उसे जघन्या और वृषली कहा है। " विवाह के पहले रजस्वला होने पर पिता श्रेष्ठ, समान और
जघन्य किसी को भी कन्या दे सकता है, इसमें दोष नहीं लगता। मैं इसे इसी के योग्य वर को देना चाहता हूं दूसरे को नहीं। कहा भी है --