________________
२००
पञ्चतन्त्र
दूध का भोग लगाकर वह अपने घर की ओर चल पड़ा । जब सबेरे लौटकर देखा तो कटोरे में एक मोहर ( दीनार ) दिखाई पड़ी ।
इस तरह वह हर दिन अकेला आकर सांप को दूध देता था और एक मोहर लेता था । किसी दिन बांबी पर दूध ले जाने के काम में अपने लड़के को लगाकर ब्राह्मण गांव के बाहर चला गया । उसका पुत्र भी वहां दूध ले जाकर फिर घर वापस लौट आया । दूसरे दिन वहां जाकर तथा यहां एक दीनार देखकर और उसे लेकर उसने सोचा, “निश्चय ही यह बांबी सोने के मुहरों से भरी पड़ी है। इसलिए मैं सर्प को मारकर एक बार ही सब मोहरें ले लूंगा । इस तरह निश्चय करके दूसरे दिन दूध देते हुए ब्राह्मण के लड़के ने सांप के सिर पर लाठी मारी । भाग्यवश सर्प किसी तरह बच गया, पर गुस्से से विषैले दांतों से उसे काट लिया, जिससे वह फौरन मर गया । रिश्तेदारों ने खेत के पास ही लकड़ियां इकट्ठी करके उसे जला दिया ।
66
दूसरे दिन उसका पिता वापस आया और रिश्तेदारों से अपने लड़के के मरने का कारण सुनकर सर्प का समर्थन किया । कहा भी है, 'जो अपने शरण में आये हुए प्राणियों पर कृपा नहीं करता, उसकी सफलताएं पद्म-वन के हंसों की तरह नष्ट हो जाती हैं ? आदमियों ने पूछा, "यह कैसे ? " ब्राह्मण कहने लगा
सोने के हंस और सोने की चिड़िया की कथा
" किसी नगर में चित्ररथ नाम का एक राजा रहता था। उसके राज्य में सिपाहियों से रक्षित पद्मसर नाम का एक तालाब था । उसमें बहुत से सोने के हंस रहते थे, जो छः महीने में एक बार अपने पर गिराते थे । उस तालाब में एक बार सोने का एक बड़ा पक्षी आया । हंसों ने उससे कहा, "तुझे हम सब के बीच में नहीं रहना होगा, क्योंकि हम सबों ने छः महीने के अन्त में अपने पर देकर इस तालाब को ले लिया है ।" बहुत कहने से क्या ? इस तरह आपस में लड़ाई हो गई। पक्षी ने राजा की शरण में जाकर कहा, वे सब पक्षी ऐसा कहते हैं, "राजा हमारा क्या कर लेगा, हम किसी को यहां