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काकोलूकीय
२०१ बसने नहीं देंगे।" तब मैंने कहा, "तुम सब यह ठीक नहीं कहते, मैं राजा से जाकर सब कुछ कह दूंगा। बाद में तो राजा का अख्तियार है।" इस पर राजा ने अपने नौकरों को हुक्म दिया, “अरे ! तुम सब हंसों को मारकर यहां लाओ।" राजा का हुक्म होते ही वे चल पड़े। हाथ में डंडे लिये हुए राजा के आदमियों को देखकर एक वुड्ढे पक्षी ने कहा, “अरे भाइयो ! यह बुर। हुआ। हम सवों को एक साथ यहां से उड़ जाना चाहिए।" सबों ने ऐसा ही किया।
इसलिए मैं कहता हूं कि जो अपनी शरण में आये प्राणियों पर कृपा नहीं करता , उसकी सफलताएं पद्मवन के हंसों की तरह नष्ट हो जाती
यह कहकर फिर ब्राह्मण दूसरे दिन दूध लेकर और वहां जाकर ऊंची आवाज से सर्प की विनती करने लगा। इस पर बांबी के दरवाजे के भीतर से सर्प ने ब्राह्मण को जवाब दिया, "लालच से तुम अपने लड़के का शोक भूलकर यहां आये हो। इसके बाद हमारे-तुम्हारे बीच की प्रीति ठीक नहीं । तुम्हारे लड़के ने जवानी के घमंड में मुझे मारा और मैंने उसे काट लिया। उस डंडे की मार को मैं कैसे भूल सकता हूं और तुम अपने लड़के की मृत्य के शोक को कैसे भूल सकते हो ?" यह कहकर उसे एक बेशकीमती हीरा देकर 'इसके बाद तुम फिर यहां कभी मत आना' यह कह कर सर्प बिल में घुस गया। ब्राह्मण भी हीरा लेकर अपने लड़के की अक्ल की निन्दा करते हुए अपने घर लौट आया।
इसलिए मैं कहता हूं कि जलती चिता और मेरे टूटे फन को देख ; पहले टूटी और बाद में जोड़ी प्रीति स्नेह से नहीं बढ़ती।। ___ इसके मारे जाने पर बिना कोशिश से राज्य अकंटक हो जायगा।" उसकी यह बात सुनकर उलूक-राज ने क्रूराक्ष से पूछा, “भद्र ! तू क्या मानता है ? " उसने उत्तर दिया, “देव ! जो कुछ इसने कहा, वह निर्दयता है। क्योंकि शरण में आये हुए को कभी नहीं मारना चाहिए। ऐसा कहा है
"सुना जाता है कि कबूतर ने शत्रु के शरण आने पर उसकी पूजा