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पञ्चतंत्र
उसे दुखी देखकर उसके साथियों ने कहा, “अरे सेठ, क्यों तुम इस बैल
के कारण सिंह और बाघ से भरे इस वन में अपने सारे कारवां को जोखिम में डालते हो ? कहा भी हैं-
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"बुद्धिमान पुरुष छोटी चीजों के लिए बड़ी वस्तुओं का नाश नहीं ४ करते, छोटी वस्तु छोड़कर बड़ी वस्तु का रक्षण करना ही पांडित्य है ।"
इस पर उनकी बात मानकर संजीवक के लिए रखवारे नियुक्त कर बाकी अपने साथियों के साथ वह आगे चल निकला। उन रखवारों ने वन को अनेक विन्नों से भरा जानकर संजीवक को छोड़ दिया और पीछे से दूसरे दिन सार्थवाह के पास जाकर उससे झूठ ही कहा, “हे स्वामी, संजीवक मर गया । उसे सार्थवाह का प्यारा जानकर हमने उसका अग्नि संस्कार कर दिया ।" यह सुनकर स्नेहार्द्र - हृदय और कृतज्ञ सार्थवाह ने उसकी वृषोत्सर्ग आदि उत्तर - क्रियाएं सम्पन्न कीं ।
यमुना के जल से सिंचित शीतल हवा से स्वस्थ शरीर होकर, संजीबक अपने बाकी आयुष्य के कारण किसी तरह उठकर यमुना तट के ऊपर पहुँचा । वहां पन्ने जैसी नीली दूब के नये दूंगों को चरता हुआ वह थोड़े ही दिनों में महादेव के नंदी जैसा पुष्ट, बड़े डील वाला और बलवान हो गया तथा हर रोज अपने सींगों से बांबी खोदता हुआ हंकड़ने लगा । ठीक ही कहा है-
"अरक्षित व्यक्ति भी भाग्य से रक्षित होने पर रक्षा पाता है और सुरक्षित व्यक्ति भी भाग्यहीन होने से नष्ट हो जाता है । वन में छोड़ दिये जाने पर भी अनाथ व्यक्ति जीता है, घर में प्रयत्न करने पर भी मनुष्य नाश पाता है ।" एक समय सब जानवरों से घिरा हुआ पिंगलक नाम का सिंह प्यास से व्याकुल होकर पानी पीने के लिए यमुना तट पर उतरा और दूर से ही संजीवक का गंभीर शब्द सुना। उसे सुनकर उसका हृदय व्याकुल हो उठा, पर जल्दी से उसने अपनी हालत छिपाकर बरगद के नीचे चतुमंडल सभा