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मित्र-भेद लेन-देन का व्यापार, जवाहरात का व्यापार, परिचित ग्राहक के हाथ माल बेचने का काम, झूठे दाम पर माल बेचना , खोटी तौल-माप रखना तथा देसावर से माल मंगाना ।
'सौदों में सुगंधित द्रव्य ही असल सौदा है, जो एक में खरीदने पर सौ में बिकता है। फिर सोने इत्यादि के व्यापार से क्या लाभ ! घर में गिरवी रकम देखकर सेठजी अपने कूल-देवता की प्रार्थना करते हैं कि गिरों धरने वाले के मरने पर मैं आपकी मन्नत उतारूंगा।" "जवाहरात का काम करने वाला जौहरी सुखी मन से सोचता है,
पृथ्वी धन से भरी है , फिर मुझे दूसरी वस्तु से क्या काम ! "परिचित ग्राहक को आते देखकर उसे ठगने की ब्योंत की घबराहट
में व्यापारी पुत्र-जन्म का सुख मानता है। और भी "भरे और खाली नपुए से वह नित्य परिचित जनों को ठगता है; माल की खोटी कीमत कहना यही किराटों यानी लुच्चे व्यापारियों का स्वभाव है । और भी "दूर देसावर में गए व्यापारियों को उनके उद्यम से नियमपूर्वक
माल बेचने से दुगुना-तिगुना धन मिलता है।" इस प्रकार विचार करके मथुरा के उपयोगी माल लेकर अच्छी सायत में, गुरुजनों की आज्ञा लेकर तथा अच्छे रथ पर चढ़कर वह बाहर निकला । अपने घर में ही पैदा हुए माल ढोनेवाले संजीवक और नन्दक नाम के शुभ लक्षण वाले दो बैलों को उसने अपने रथ में जोत दिया था। इन दोनों में संजीवक नाम के बैल का पैर यमुना के किनारे उतरते हुए कीचड़ में फंसकर टूट गया, और जोत टूट जाने पर वह जमीन पर बैठ गया। उसकी यह अवस्था देखकर वर्धमान को बड़ा दुःख हुआ। स्नेह से द्रवित होकर वह उसके लिए तीन दिनों तक अपनी यात्रा रोके रहा ।