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________________ पञ्चतंत्र धन चाहने वाले धनियों के बारे में न गाएं। "इस लोक में पराये मनुष्य भी धनियों के स्वजन हो जाते हैं , दरिद्रों के लिए स्वजन भी उसी क्षण से दुर्जन हो जाते हैं। "पर्वत से निकली तथा आगे जाती हुई नदी जिस तरह बढ़ती है, उसी प्रकार धन बढ़ने पर लोगों की सब क्रियाएं आगे बढ़ती हैं। "अपूज्यों की पूजा, अगम्यों के पास जाना, अवन्दनीयों की वन्दना, यह सब धन का प्रभाव है। "भोजन से जिस प्रकार सब इन्द्रियां काम करती हैं, उसी प्रकार धन से सब काम होता है । इसी कारण से धन को सब कार्यों का साधन कहते हैं। "इस जीवलोक में धन की कामना करने वाले श्मशान में भी रहते हैं, पर उनके पिता भी गरीब हों तो वे उन्हें दूर से छोड़कर भाग जाते हैं। "उमर बीत जाने पर भी जिन मनुष्यों के पास पैसा होता है वे जवान कहलाते हैं, पैसा जिनके पास नहीं होता वे जवानी में भी बूढ़े कहलाते हैं। भिक्षा, राजसेवा, खेती, पढ़ाई, लेनदेन और व्यापार इन छ: उपायों से मनुष्यों को धन मिलता है। इन सब में व्यापार का फायदा सबसे अच्छा है। कहा भी है - "बहुतों ने भिक्षा मांगी पर अरे ! राजा उन्हें उचित दान देता नहीं; बरसात न होने से खेती सूख जाती है ; नौकरी अति कठिन है; दूसरे के हाथ में गई धन की थैली लेन-देन में छीज जाती है; इसलिए जगत में मैं व्यापार से उत्तम कोई दूसरा धंधा नहीं मानता। धन-प्राप्ति के सब उपायों में माल इकट्ठा करना सब से अच्छा उपाय है। धन-प्राप्ति के लिए एक ही उपाय की प्रशंसा की गई है इसके सिवाय दूसरे उपाय संदेहात्मक हैं । धन पैदा करने के लिए सात तरह के व्यापार हैं, यथा गंधी का व्यापार,
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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