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मित्र-भेद यांनी सिंह, सिंह के अनुयायी, काकरव और नौकरों की सभा बुलाई। करटक और दमनक नाम के दो अधिकार-भष्ट शृगाल मंत्रि-पुत्र सदा उसके पीछे फिरते थे। उन दोनों ने यह देखकर आपस में विचार किया। दमनक बोला , "भद्र करटक , यह अपना स्वामी पिंगलक पानी पीने के लिए यमुना के किनारे पर आकर खड़ा है । प्यास से व्याकुल होते हुए वह किस कारण से पीछे फिरकर व्यूह-रचना करके उदासचित्त होकर इस वट-वृक्ष के नीचे आ गया है ?" करटक ने कहा--
"इस बात से अपने को क्या मतलब ? अपने काम के सिवा जो दूसरे के बारे में सिर मारने जाता है वह खीला खींचने वाले बन्दर की
तरह मृत्यु पाता है।" दमनक ने कहा, "यह कैसे ?" करटक ने कहा--
खीला खींचने वाले एक बन्दर की कथा "किसी नगर के पास एक बगिया के बीच एक बनिये ने देव-मंदिर बनवाना आरम्भ किया। वहां थवई वगैरह जो कारीगर थे, वे भोजन के लिए दोपहर में शहर को चले जाते थे। एक ऐसा अवसर पड़ा कि पास में रहने वाला बन्दरों का एक झुण्ड इधर-उधर कूदता-फांदता उस स्थान पर आ पहुँचा। वहां किसी शिल्पी ने आधा चिरा हुआ साल का लट्ठा छोड़ दिया था और उसके बीच में खैर का एक खीला ठोंक दिया था। बंदरों ने पेड़ों के सिरे से मंदिर के शिखर के ऊपर और लकड़ियों के ऊपर मनमाने तौर से कूदना आरम्भ कर दिया। उनमें से एक बन्दर जिसकी मृत्यु पास आ गई थी, खिलवाड़ से अधचिरे लट्ठे पर बैठकर हाथ से खीला खींचने का प्रयत्न करने लगा। उसी समय लट्ठे की फांस के बीच उसका अण्डकोश लटक रहा था। खीला अपने स्थान से खिसक गया और जो फिर नतीजा हुआ उसके बारे में तो मैंने पहले ही तुमसे कह दिया है । इसलिए मैं कहता हूँ कि अपना काम न होने पर भी दूसरे के काम में जो माथा मारने जाताहै, वह खीला खींचने वाले बन्दर की तरह मृत्यु पाता है। सिंह के खाने से बचा