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काकोलूकीय
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मिलकियत है ।
. इसलिए यह मेरा घर है, तेरा नहीं ।" कपिंजल ने कहा, "अरे ! अगर तू धर्म-शास्त्र के बहुत प्रमाण मानता है तो मेरे साथ चल, जिससे हम दोनों किसी धर्म-शास्त्रज्ञ से पूछ देखें । वह इस खोखले को जिसे दे, उसे लेना चाहिए ।" उन दोनों के इस प्रकार समझौता करने पर मैंने भी सोचा, “इस बारे में क्या होगा ? मुझे भी यह न्याय देखना चाहिए ।" मैं भी कुतूहल से उनके पीछे हो लिया ।
इसी बीच में तीक्ष्णदंश नाम का एक जंगली बिल्ला उनकी लड़ाई सुनकर रास्ते में आया । नदी के किनारे पहुंचकर तथा हाथ में कुशा लेकर, एक आंख मूंदकर और एक हाथ ऊंचा करके पंजे के बल खड़े होकर सूरज की तरफ देखते हुए वह इस तरह धर्मोपदेश करने लगा
“अरे यह संसार असार है, जीवन क्षणभंगुर है, प्रियजनों का समागम सपने की तरह है और कुटुम्बियों का समूह जादू की तरह है । इसलिए धर्म के बिना दूसरा कोई आसरा नहीं । कहा है कि
" शरीर अनित्य है, धन हमेशा टिकने वाला नहीं है, मृत्यु नित्य पास में है, इसलिए धर्म का संचय करना चाहिए ।
" जिनके दिन बिना धर्म के आते हैं और जाते हैं वे लोहार की भाभी की तरह सांस लेते हुए भी नहीं जीते ।
"कुत्ते की पूंछ जिस तरह गुप्त भाग को नहीं ढंक सकती, तथा डांस और मच्छरों का काटना भी नहीं रोक सकती, उसी तरह धर्म के विना पांडित्य भी पाप दूर करने में असमर्थ होकर निरर्थक हो जाता है ।
और भी
"जो धर्म के मूल तत्वों को नहीं मानते वे अन्नों में पुलाक की तरह, परिंदों में मधुमक्खी की तरह, और प्राणियों में मच्छर जैसे हैं । "फूल और फल ये वृक्ष के श्रेय हैं, घी दही का श्रेय कहा गया है,