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पञ्चतन्त्र और राजर्षियों के चरित्रों का कीर्तन करते हुए तथा घूमने-फिरने में आई हुई अनेक आश्चर्यजनक बातें कहते हुए सुख से बीतता था। ___ एक बार वह कपिंजल दूसरे गौरों के साथ चारा चरने के लिए दूसरे पके धान के देश में गया। बाद में रात हो जाने पर भी जब वह नहीं लौटा तो घबराकर और उसके वियोग से दुखी होकर मैं सोचने लगा, "अरे आज कपिजल क्यों नहीं आया ? किसी ने क्या उसे जाल में फंसा लिया ?या किसी ने उसे मार डाला ? अगर वह कुशलपूर्वक होता तो मेरे बिना कभी नहीं रुकता।" मुझे इस तरह सोचते-विचारते बहुत दिन बीत गए। .
फिर एक बार सूरज डूबने के समय शीघ्रग नाम का खरगोश आ कर उस खोखल में घुस गया । मैंने भी कपिजल की आशा छोड़ देने के कारण उसे रोका नहीं। बाद में एक दिन धान खाने से पुष्ट शरीर वाला कपिजल अपने घोंसले की याद कर वापस लौट आया । अथवा ठीक ही कहा है कि , __ "प्राणियों को गरीबी में भी अपने देश में, नगर में और घर में
जितना सुख मिलता है, उतना स्वर्ग में भी नहीं।" खोखले में रहते हुए खरगोश को देखकर उसने तिरस्कार से कहा, "अरे! यह तो मेरा घर है । तू जल्दी बाहर निकल ।" खरगोश ने उत्तर दिया , “यह घर तेरा नहीं है, मेरा है। किसलिए तू कड़ी बातें कहता है। कहा है कि
"बावड़ी, कुआं, तालाब, देवालय, तथा वृक्षों को एक बार छोड़ देने
पर पुनः उसके ऊपर अपनी मिलकियत कायम नहीं की जा सकती। उसी प्रकार
"अगर किसी के सामने कोई दस बरस तक खेत इत्यादि को भोगता रहे तो उसका यह भोगना ही उसके मिलकियत का प्रमाण ह, गवाह और कागज-पत्र प्रमाण नहीं हैं। "यह न्याय मनुष्यों के लिए मुनियों ने कहा है । पशु और पक्षियों के बारे में जब तक उनका जहां अड्डा हो तब तक ही उनकी वहां