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पञ्चतन्त्र
" एक ही तेजस्वी राजा पृथ्वी के लिए हितकारी होता है । प्रलय काल में सूर्यो की तरह यहां बहुत से राजे तो केवल विपत्ति के कारण ही बन जाते हैं ।
फिर केवल गरुड़ का ही नाम लेकर तुम शत्रुओं से अजेय हो सकते हो । कहा है कि
“दुष्टों के सामने अपने मालिकस्वरूप बड़ों के नाम मात्र लेने से ही सिद्धि मिलती है । चन्द्रमा का नाम लेने से खरगोश सुखपूर्वक रहता है ।"
पक्षियों ने कहा, “ यह कैसे ?" कौआ कहने लगाखरगोश और हाथी की कथा
" किसी वन में चतुर्दन्त नाम का यूथपति एक गजराज रहता था । एक समय वहां बहुत दिनों तक पानी नहीं बरसा, जिसकी वजह से तालाब, तलैया और सरोवरों में पानी सूख गया । इस पर सब हाथियों ने गजराज से कहा, “देव ! प्यास से व्याकुल होकर हाथियों के बच्चे मरने के करीब आ गए हैं और कुछ मर भी चुके हैं, इसलिए आप कोई जलाशय खोज निकालिए कि जहां पानी पीकर वे पुनः ठीक हो सकें ।" बाद में बहुत देर तक विचार करके उसने कहा, "एक एकांत प्रदेश के बीच में पाताल-गंगा के पानी से हर समय भरा हुआ गढ़ा है, इसलिए तुम सब वहां चलो।” इस तरह पांच रात चलने के बाद वे सब उस गढ़े के पास पहुंचे और उसके पानी में इच्छापूर्वक स्नान करने के बाद सूरज डूबने के समय बाहर निकले । उस गढ़े के आस-पास कोमल भूमि में खरगोशों की अनेक बिलें थीं । इधर-उधर भागते हुए उन हाथियों ने उस जगह को रौंद डाला । बहुत से खरगोशों के पांव, सिर और गर्दन टूट गई, बहुत से मर गए और बहुत से मरने के करीब पहुंच गए ।
बाद में हाथियों का वह झुंड चला गया । इस पर जिनकी बिलें हाथियों के पैर से टूट गई थीं, जिन कुछ के पैर टूट गए थे, जिन