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काकोलूकीय कुछ की देह जर्जरित हो गई थी, जो कुछ लोहू-लुहान हो गए थे,
और जिनकी मरने से आंखें आंसुओं से भरी थीं, ऐसे खरगोश इकट्ठे होकर आपस में सोचने लगे, "अरे ! हम सब मर गए ! हाथियों का यह . झुंड रोज आयगा क्योंकि और किसी स्थान पर पानी नहीं है। इसलिए हम सबका नाश हो जायगा। कहा है कि
"हाथी छूते ही मार डालता है, सांप सूंघते ही मार डालता है, राजा हँसते हुए मारता है, और दुर्जन मान देते हुए मारता है । इसलिए
इसका कोई उपाय सोचना चाहिए।" उनमें से एक खरगोश बोला, "और क्या हो सकता है ? देश छोड़कर चले जाओ । मनु और व्यास ने भी कहा है कि
"कुल के लिए एक का त्याग करना चाहिए , गांव के लिए कुल का त्याग करना चाहिए, देश के लिए गांव छोड़ना चाहिए और अपने लिए पृथ्वी छोड़ देनी चाहिए। "क्षेमकारी, नित्य धान देने वाली और पशुओं को बढ़ाने वाली जमीन भी राजा को अपनी रक्षा के लिए बिना किसी विचार के छोड़, देनी चाहिए। "आपत्ति के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए, धन से स्त्री की
रक्षा करनी चाहिए तथा धन और स्त्री से हमेशा अपनी रक्षा __करनी चाहिए।"
बाद में सब खरगोश बोले , "अरे ! बाप-दादों की जगह एकाएक छोड़ी नहीं जा सकती, इसलिए हाथियों को कोई ऐसा डर दिखलाना चाहिए, जिससे भाग्यवशात् वे फिर यहां न आए । कहा है कि
"विषहीन सर्प को भी बड़ा फन फैलाना चाहिए। जहर हो या न
हो, पर फन का आडम्बर भयंकर लगता है।"
इसके बाद दूसरों ने कहा, “अगर ऐसी बात है तो उन्हें डराने के लिए एक ऐसा बड़ा उपाय है जिससे वे फिर यहां न आएंगे । पर भय पैदा करने वाला वह उपाय दूत से ही साध्य हो सकता है। हमारा मालिक विजयदत्त