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काकोलूकीय
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निकला और बोला, "पक्षियों का यह मेला और महोत्सव किसलिए हो रहा है ?” बाद में पक्षी उसे देखकर आपस में कहने लगे, ''पक्षिओं में कौआ चतुर है, ऐसा सुना गया है । कहा भी है कि-
"मनुष्यों में नाई, पक्षिओं में कौआ, दांतवाले प्राणियों में सियार, तपस्वियों में श्वेतभिक्षु (गोरस त्यागने वाला पांडुर भिक्षु ) धूतं होता है ।
इसलिए इसकी बात माननी चाहिए। कहा है कि
"विद्वानों द्वारा बहुत बार और बहुतों के साथ सोची हुई तथा अच्छी तरह से योजित की गई और विचारी हुई योजनाएं किसी तरह मुश्किल नहीं पड़तीं ।"
बाद में कौए ने आकर उनसे कहा, "महाजनों का यह सम्मेलन और परम महोत्सव किसलिए हो रहा है ?” उन्होंने उत्तर दिया, “अरे ! पक्षिओं का कोई राजा नहीं है इसलिए सब पक्षियों ने उल्लू को पक्षियों के राजा की तरह राजतिलक करने का निश्चय किया है। अब तू अपना अभिप्राय कह, तू ठीक समय पर आया है ।" इस पर उस कौए ने हंसकर कहा, " अरे यह ठीक नहीं है । मोर, हंस, कोकिल, चकवा, तोता, हारिल, सारसआदि मुख्य पक्षियों के होते हुए भी दिन में अंधे और बदसूरत उल्लू का अभिषेक करने में मेरी सम्मति नहीं है । क्योंकि
" दिन में अंधा यह उल्लू, क्रोध में न होते हुए भी टेढ़ी नाक वाला, ऐंची आंख वाला, भयंकर और बदसूरत है । फिर क्रोधित होने पर वह कैसा लगेगा ?
और भी
"स्वभाव से ही अत्यन्त भयंकर, अतिक्रोधी निर्दय, और बदसूरत उल्लू को राजा बनाने से हम सबको क्या फायदा होगा ?
,
फिर गरुड़ के हम सबका राजा होते हुए इस दिन में अंधे को किस लिए राजा बनाया जा रहा है ? वह शायद गुणवान हो सकता है, पर एक राजा के होते हुए दूसरे राजा को बनाना प्रशंसनीय नहीं गिना जा सकता ।