________________
पञ्चतन्त्र
कौनों और उल्लुओं के बीच पुराने वैर की कथा
"वत्स ! एक समय हंस, तोते, बगले, कोयल, चातक, उल्ल, मोर, कबूतर , परेवा , मुर्गे इत्यादि पक्षी इकट्ठे होकर उद्वेग से विचार करने लगे , “अहो ! गरुड़ हम सब के राजा हैं पर वे वासुदेव के सेवक हैं, इसलिए कभी हमारी चिंता नहीं करते। ऐसे व्यर्थ के मालिक से क्या लाभ जो बहेलियों के जाल से बंधते हुए हमारी कभी रक्षा नहीं करते! कहा भी है,
"जो दूसरों से तकलीफ पाते हुए और डरे हुए जीवों की रक्षा नहीं करता, वह राजा के रूप में काल है, इसमें शक नहीं। "जहां पर राजा अच्छा नेता नहीं होता तो कर्णधार के बिना नौका
की तरह प्रजा का नाश होता है। "उपदेश न देने वाला आचार्य, अध्ययन न करने वाला ऋत्विज, रक्षा न करने वाला राजा, कड़वा बोलने वाली पत्नी , गांव में रहने • वाला ग्वाला और वन में रहने की इच्छा करने वाला नाई, इन
छहों को समुद्र में टूटे हुए जहाज की तरह छोड़ देना चाहिए। . इसलिए हम सबको सोच-विचारकर किसी दूसरे पक्षी को राजा बनाना चाहिए।" बाद में अच्छी शकल के उल्लू को देखकर सबने कहा कि ''यह उल्लू हम सब का राजा होगा, इसलिए राजतिलक में लगने वाली चीजें लाओ।" बाद में अनेक तीर्थों का जल लाया गया। एक सौ आठ औषधियोंकी जड़ों से सामग्री बनी। सिंहासन सजाया गया। सात द्वीपों वाली पृथ्वी का व्याघ्रचर्म फैलाया गया, मंडल चित्रित किया गया। विचित्र पर्वतों सहित सोने का घड़ा भरा गया। दीप, वाद्य और शीशे जैसी मांगलिक वस्तुएं तैयार की गई । प्रधान बन्दीजन स्तुति-पाठ करने लगे। ब्राह्मण एक स्वर से वेदोच्चार करने लगे। युवतियां गीत गाने लगीं। कृकालिका नाम पट्टरानी को जैसे ही लाया गया और जैसे ही राजतिलक के लिए उल्लू राज-सिंहासन पर बैठ रहा था, कि कहीं से एक कौआ आ