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काकोलूकीय
१८१ जानते हो? "तीर्थ शब्द से आयुक्तकर्मा अर्थात् राज्य कर्मचारी का अर्थ होता है। अगर उसमें एक भी बदमाश हो तो स्वामी का अनर्थ उससे होगा; और वे उत्तम हैं तो उनसे स्वामी की बढ़ती होगी। "शत्रु-पक्ष के तीर्थ इस प्रकार हैं--मंत्री, पुरोहित, सेनापति, युवराज, द्वारपाल, अन्तरवांशिक (अन्तःपुर का अधिकारी),प्रशासक,प्रधानन्यायाधीश, समाहर्ता (टिकस वसूल करने वाला), सन्निधीता, ( लोगों को राजसभा में दाखिल करने वाला), प्रदेष्ट्रा (न्यायाधीश),ज्ञापक (अर्जी सुनने वाला), साधनाध्यक्ष (घुड़सवारों का अध्यक्ष), गजाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, दुर्गपाल, कारापाल (जेलर), सीमापाल ( राज्य-सीमा की रक्षा करने वाला ), और मर मिटने वाले नौकर। इन सब के फोड़ने से दुश्मन तुरन्त वश में आता है । अपने पक्ष में भी--देवी, राजमाता, कंचुकी, माली, शय्यापाल, गुप्तचर, ज्योतिषी, वैद्य, पानी भरने वाला, पान बीड़ा ले जाने वाला, आचार्य, अंगरक्षक, स्थान-चिन्तक (सेना का नायक), छाता लेने वाला और वेश्या, ये तीर्थ हैं । इनके साथ दुश्मनी करने से अपने पक्ष का नाश होता है । स्वपक्ष में अधिकार रखने वाले गुप्तचर, वैद्य, ज्योतिषी, आचार्य,
सर्प-विद्या जानने वाले और पागल शत्रुओं का सब भेद जान लेते हैं। जौर भी "जिस तरह पैर के अन्दाज से पानी की गहराई जान ली जाती है, उसी तरह अपने काम में कुशल गुप्तचर अधिकारियों का भीतरी
भेद लेकर शत्रुरूपी गहरे जल की थाह जान लेते है।" इस तरह मंत्री की बात सुनकर मेघवर्ण ने कहा, "तात ! कौओं और उल्लुओं के बीच हमेशा जानी दुश्मनी चले आने का कोई कारण तो रहा होगा।" स्थिरजीवि कहने लगा