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पञ्चतन्त्र
और भी
अतीत के लाभ की रक्षा के लिए, भविष्य के लाभ की प्राप्ति के लिए और आपत्ति में पड़े हुए को छुड़ाने के लिए जो सलाह की जाय, वही उत्तम सलाह है ।"
यह सुनकर कौए ने कहा , “अगर यह बात है तो मेरी बात मानो। शिकारी के रास्ते में जाकर और किसी तलैया को खोजकर उसके किनारे चित्रांग बेहोश होकर पड़ रहे । मैं भी उसके माथे पर बैठकर चोंच की धीमी चोटों से उसका सिर खोदूंगा जिससे वह शिकारी मेरे नोचने से इसे मरा जानकर मंथरक को जमीन के ऊपर रखकर हिरन के लिए दौड़ेगा। उसी समय तुम जल्दी से दर्भ का बंधन काट डालना, जिससे मंथरक जल्दी से तालाब में घुस सके । चित्रांग ने कहा, “तूने यह बड़ा सुन्दर विचार प्रकट किया । निश्चय ही अब मंथरक को छूटा हुआ ही मानना चाहिए । कहा है कि
"सब प्राणियों के बारे में काम पूरा होगा या नहीं होगा, यह चित्त का उत्साह पहले से ही बता देता है। बुद्धिमान पुरुष ही यह बात
जानता है, दूसरा नहीं। इसलिए ऐसा ही करो।" ऐसा ही करने में आया भी। शिकारी ने रास्ते में तलैया के किनारे कौए के साथ चित्रांग को उसी प्रकार से देखा। उसे देखकर खुशी-खुशी वह विचार करने लगा , “यह मृग जिसकी कुछ आयुष्य बच गई थी, किसी तरह अपने फंदे छुड़ाकर फंदे के वेदना के कारण बेचारा मर गया है। ठीक-ठीक बंधे रहने के कारण यह कछुआ तो मेरे वश में है ही। फिर इस हिरन को भी मैं लूंगा। इस तरह विचार करके और कछुए को जमीन पर रखकर वह हिरन की ओर दौड़ा । उसी समय हिरण्यक ने अपने वज़ समान दांतों की चोट से दर्भ के बंधनों को काटकर उसी क्षण टुकड़े-टुकड़े कर डाला और मंथरक भी तिनकों के बीच से निकल कर तलैया में घुस गया। चित्रांग भी शिकारी के आने के पहले ही उठकर कौए के साथ दूर भाग गया।