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मित्रसंप्राप्ति
e उस समय लज्जा और खद से युक्त शिकारी ने पीछे फिरकर देखा तो कछुआ भी गायब था। बाद में वहां बैठकर उसने यह श्लोक पढ़ा
"एक बड़ा मृग मेरे जाल में फंस गया था, उसे भी तूने हर लिया ; बाद में कछुआ मिला,वह भी तेरे आदेश से चल दिया । अपनी स्त्री और बालकों से अलग होकर मैं भूख की पीड़ा से इस वन में धूम रहा हूं, इसलिए हे स्वामी काल! तूने अभी तक जो नहीं किया है
वह भी कर ले ; उसके लिए भी मैं तैयार हूं।" इस तरह रोते-कलपते वह अपने घर चला गया। उसके दूर निकल जाने के बाद परम आनंदित कौआ, कछुआ, हिरन और चूहा एकत्रित होकर एक-दूसरे को भेंटकर और अपना पुनर्जन्म मानकर, उसी तालाब के किनारे जाकर , बातचीत और हंसी-मजाक में अपना समय बिताने लगे।
यह जानकर बुद्धिमान को मित्र बनाना चाहिए और मित्र के साथ निष्कपट व्यवहार करना चाहिए । कहा है कि ।
"जो मनुष्य मित्र बनाता है और उसके साथ निष्कपट भाव से व्यवहार करता है वह किसी तरह का तिरस्कार नहीं पाता।"