________________
पञ्चतन्त्र
"व्यभिचारिणी स्त्री बनावटी लज्जा दिखलाती है, खारा पानी ठंडा होता है, दंभी मनुष्य विवेकी होता है और धूर्त-जन मीठे बोलने
वाले होते हैं। इस तरह जब वह उनकी नौकरी कर रहा था उसी समय ब्राह्मणों ने अपने सब माल बेचकर कीमती जवाहरात खरीदे। उस ब्राह्मण के सामने ही उन रत्नों को जांघ में छिपाकर दूसरे ब्राह्मणों ने अपने देश जाने की तैयारी की। इस पर वह धूर्त ब्राह्मण उन ब्राह्मणों को देश जाने की तैयारी करते हुए देखकर घबड़ाया। 'अरे! इस धन में से तो मुझे कुछ मिला नहीं,इसलिए इन लोगों के साथ जाऊं। रास्ते में किसी तरह इन्हें जहर देकर सब जवाहरात ले लूंगा।" इस तरह सोचकर उन लोगों के सामने वह रोते हुए कहने लगा , " मित्रो ! तुम मुझे अकेला छोड़कर जाने के लिए तैयार हुए हो । मेरा मन तो तुम्हारे स्नेहपाश से बंध गया है और तुम्हारे विरह के नाम से ही मैं इतना व्याकुल हो गया हूं कि मेरा धीरज नहीं बंधता । इसलिए तुम सब कृपा करके मुझे अपने साथ सहायक की तरह ले चलो।" उसकी यह बात सुनकर करुण-चित्त ब्राह्मण उसे साथ लेकर अपने देश जाने के लिए निकल पड़े।
___ रास्ते में वे पांचों जन एक पल्ली (किरातों का गांव) से होकर निकले। इतने में कौए चिल्लाने लगे, “अरे किरातो ! दौड़ो, दौड़ो ! सवा लाख के धनी जा रहे हैं। उन्हें मारकर धन ले लो।" कौओं की बात सुन कर किरातों ने जल्दी से वहां जाकर डंडे से उन ब्राह्मणों की मरम्मत करके तथा उनके कपड़े उतरवाकर उनकी तलाशी ली, पर कुछ धन नहीं मिला। इस पर किरातों ने कहा , “हे पथिको ! पहले कभी भी कौओं की बात झूठी नहीं पड़ी है, इसलिए जो कुछ भी धन तुम्हारे पास हो हमें दे दो नहीं तो सब को मारकर और चमड़ी चीरकर तुम्हारे सब अंगों की हम तलाशी लेंगे।" उनकी यह बात सुनकर चोर ब्राह्मण ने मन में विचार किया, "ये ब्राह्मणों को मारकर उनके अंगों की तलाशी लेकर रत्न ले लेंगे और मुझे भी मार डालेंगे, तो इसलिए मैं पहले ही बिना रत्न