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मित्र-भेद
धर्मात्मा की तथा मूर्ख विविध शास्त्रों के विद्वान पुरुष को
निन्दा करते है। उसी प्रकार "मूर्खगण पंडितों से द्वेष करते हैं, निर्धन धनवानों से द्वेष करते हैं, पापी व्रत करने वालों से द्वेष करते हैं, और कुलटाएं पतिव्रताओं
से द्वेष करती हैं। हे मूर्ख ! हित करते हुए भी तूने अहित किया है। कहा है कि ''पंडित शत्रु अच्छा है, पर मूर्ख हितैषी अच्छा नहीं है। बंदर ने
राजा का नाश किया पर चोर ने ब्राह्मण की रक्षा की ।" दमनक ने कहा , “यह कैसे ?" करटक कहने लगा --
राजा और बंदर की कथा "एक बन्दर किसी राजा की सदा सेवा करके उस का खास चाकर बन गया और महल में बिना किसी रोक-टोक के घूमता हुआ वह राजा का अत्यन्त विश्वासपात्र बन गया। एक बार जब राजा सो रहा था तो वह बन्दर पंखा लेकर हवा करने लगा। उसी समय राजा की छाती पर मक्खी बैठ गई । पंखे से बार-बार उड़ाये जाने पर भी वह फिर-फिर वहीं बैठने लगी। इसलिए चंचल-स्वभाव वाले उस मूर्ख बन्दर ने क्रोधित होकर तेज तलवार लेकर उस मक्खी पर वार किया। मक्खी तो उड़ गई पर उस तेज धार वाली तलवार से राजा के दो टुकड़े हो गए और वह मर गया । इसलिए दीर्घ जीवन चाहने वाले राजा को मूर्ख सेवक नहीं रखना चाहिए। और भी, किसी नगर में एक बड़ा विद्वान ब्राह्मण पूर्व-जन्म के भोग से चोर की तरह रहता था। उस नगर में दूसरे देश से आये हुए चार ब्राह्मणों को बहुत सा माल बेचते हुए देखकर वह सोचने लगा , “अरे ! किस उपाय से मैं इनका धन ले लूं?" इस प्रकार विचार करके उनके सामने अनेक शास्त्रों में कही गई सदुक्तियां तथा मीठी-मीठी बातें कहकर उनके मन में विश्वास पैदा करके वह उनकी सेवा करने लगा। अथवा ठीक ही कहा है