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पञ्चतन्त्र
गवाह न होने पर दिव्य ( अग्नि परीक्षा इत्यादि) लेने में आती है, यह विद्वानों का कहना है ।
इस बारे में वृक्ष देवता मेरे गवाह की तरह हैं । वे ही हम दोनों में से एक को चोर अथवा साहूकार ठहरावेंगे। इस पर उन लोगों ने कहा, “अरे, तूने ठीक ही कहा । कहा भी है
" जिस मुकदमे मे एक अन्त्यज भी गवाह हो उसमें भी दिव्य की नहीं जरूरत पड़ती, फिर जिसमें देवता गवाह हों उसमें तो दिव्य की जरूरत ही कहाँ रही ?
इस बारे में हम सबको भी बड़ा कुतूहल है । सबेरे तुम दोनों हमारे साथ वन में चलना । "
बाद में पापबुद्धि ने अपने घर जाकर अपने पिता से कहा, "तात ! मैंने धर्मबुद्धि का बहुत-सा धन चुरा लिया है, वह आपकी बात से पच जायगा। नहीं तो मेरी जान के साथ-ही-साथ वह भी चला जायगा ।” पिता ने कहा,“वत्स ! जल्दी कह जिससे मैं तेरे कहने के अनुसार तेरे धन में स्थिरता ला सकूं ।” पापबुद्धि ने कहा, “ तात ! उस प्रदेश में एक बड़ा शमी का वृक्ष है और उसमें एक बड़ा खोखला है। उसके अन्दर आप जल्दी जाकर घुस जाइये और जब सबेरे मैं आप से सच्ची बात कहने को कहूं तो आप कहियेगा कि 'धर्मबुद्धि चोर है ।"
इस प्रकार प्रबन्ध हो जाने पर सबेरे नहा धोकर तथा धर्मबुद्धि को आगे करके पापबुद्धि अधिकारियों के साथ शमी वृक्ष के पास जाकर ऊंचे स्वर में बोला
"सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी, जल, हृदय, यम, दिन और रात, दोनों संध्याएं तथा धर्म इतने तत्व मनुष्य का आचरण जानते हैं ।
हे भगवति वनदेवते ! हममें से कौन चोर है उसे बताइये ।" शमी के वृक्ष के खोखले में बैठे हुए पापबुद्धि के पिता ने कहा, "अरे सुनो ! धर्मबुद्धि ने यह धन चुराया है ।" यह सुनकर आश्चर्य-भरी आंखों से राजपुरुष
"