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मित्र-भेद
१११ चाहिए, योंकि धन देखने से मुनि का मन भी चल जाता है।
और भी"जिस तरह पानी में मछलियां मांस खाती हैं , पृथ्वी पर जिस तरह हिंसक पशु मस खाते हैं, और आकाश में जिस तरह
उसका पक्षियों द्वारा भक्षण होता है उसी तरह धनवान सब जगह • नोचा जाता है।"
यह सुनकर धर्मबुद्धि ने कहा, “भद्र ! ऐसा ही करो।" इस प्रकार दोनों अपने धन की व्यवस्था करके अपने घर लौट गए और वह सुखपूर्वक रहने लगे । एक दिन पापबुद्धि आधी रात को जंगल में जाकर और सब मालमत्ता लेकर और गढ़ा पाटकर अपने घर लौट आया। बाद में एक दिन वह धर्मबुद्धि से आकर कहने लगा,"मित्र ! अधिक परिवार होने से हम दोनों धन के बिना दुखी हैं, इसलिए उस स्थान पर जाकर हमें थोड़ा सा धन ले आना चाहिए।" धर्मबुद्धि ने कहा, "भद्र ! यही करो।" बाद में दोनों ने जाकर उस जगह को खोदा, पर धन का घड़ा खाली था। इस पर पापबुद्धि ने अपना सिर पीटते हुए कहा , “अरे धर्मबुद्धि, तेरे सिवा यह धन और किसी ने नहीं चुराया है, क्योंकि गढ़ा फिर से भरा गया है। दे मुझे आधा धन, नहीं तो मैं राज दरबार में फरियाद करूंगा।" धर्मबुद्धि ने कहा, "अरे बदमाश ! ऐसा मत कह, मैं धर्मबुद्धि हूं, मैं चोरी नहीं कर सकता। कहा भी है
"धार्मिक पुरुष पर-स्त्री को माता के समान, दूसरे के धन को मिट्टी
के ढेले के समान, और सब जीवों को अपने समान देखते हैं।"
इस प्रकार आपस में झगड़ते हुए और एक दूसरे को दोष देते हुए वे दोनों धर्माधिकारी के पास गये । बाद में अदालत के अधिकारी पुरुषों ने जब उनकी अग्नि-परीक्षा इत्यादि की तैयारी की तो पापबुद्धि ने कहा, "तुम सब यथार्थ न्याय नहीं करते । कहा है कि
"मुकदमे में वादी और प्रतिवादी में लड़ाई चलने पर लेख-पत्र की जांच होती है । लेख-पत्र न होने से गवाह से पूछा जाता है और