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मित्र-भेद
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देखेगा ।" करटक ने कहा, "अरे ! आपस में प्रेम और सुखपूर्वक रहने वाले इन दोनों को तूने क्रोध के समुद्र में डाल दिया है, यह ठीक नहीं । कहा भी है-
"अपने अविरोधी सुख से बैठे मनुष्य को जो दुख के रास्ते ले जाता है, वह पुरुष अवश्य जन्मजन्मांतर में दुखी रहता है ।
अगर तू उन दोनों के बीच भेद डालने से ही संतुष्ट है, तो वह भी ठीक नहीं, क्योंकि नुकसान तो सब पहुंचा सकते हैं, पर सब उपकार नहीं कर सकते । कहा भी है-
""नीच आदमी दूसरे का काम खराब करना ही जानता है, वह काम बनाना नहीं जानता । हवा की तेजी पेड़ को नीचे गिरा सकती है, • पर ऊपर नहीं उठा सकती ।"
दमनक ने कहा, “तू नीति - शास्त्र से अनभिज्ञ है, इसलिए ऐसा कहता है कहा है कि
"जो मनुष्य पैदा होते ही दुश्मन और बीमारी को शांत नहीं कर देता उसके बड़े मजबूत होने पर भी वे (शत्रु और बीमारी ) बढ़कर . उसका अन्त कर देते हैं 1
हमारे मंत्रिपद को ले लेने से संजीवक हमारा शत्रु हो गया है । कहा है कि
"जो मनुष्य इस संसार में किसी का पुश्तैनी पद लेने का इच्छुक होता है, तो वह उसका सहज शत्रु हो जाता है; अगर वह मोहब्बती भी हो तो उसको मार डालना चाहिए ।
मैं बेवकूफी से उसे अभयदान दिलवाकर यहां लाया ! फिर भी उसने मुझे ही मंत्रि-पद से हटवा दिया 1 अथवा ठीक ही कहा है-
" सज्जन पुरुष अगर दुर्जन को अपनी जगह घुसने दे तो उस स्थान की स्वयं कामना करता हुआ दुर्जन उसको समाप्त करने की इच्छा करता है । इसलिए विशाल बुद्धि वाले पुरुषों को अधम जनों hi मौका नहीं देना चाहिए, क्योंकि एक लोकोक्ति से पता चलता है।