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पञ्चतन्त्र
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जाना चाहिए, अथवा बलवान क साथ मिलकर रहना चाहिए, यही नीति है। इसलिए तुम्हें इस देश का त्याग करना, अथवा साम आदि उपायों से अपनी रक्षा करनी चाहिए। कहा है कि
"पंडित को पुत्रों और स्त्रियों से अपने प्राण की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ये सब जान रहने पर फिर से मनुष्यों का मिल ही जाते हैं। और भी "शुभ अथवा अशुभ, किसी भी उपाय से अपने असमर्थ शरीर को . बचाना चाहिए, और समर्थ होने के बाद धर्म की बात करनी चाहिए। "जिस समय प्राण संकट में हों उस समय जो मूर्ख रुपये-पैसे इत्यादि में मोह करता है उसकी जान चली जाती है, और जान चले
जाने पर धन का नाश तो है ही।" यह कहकर दमनक करटक के पास गया। करटक भी उसको आता देखकर बोला , “भद्र ! तुमने वहां जाकर क्या किया ?" दमनक ने कहा , "मैंने तो वहां नीति का बीज बो दिया है। इससे अधिक काम तो भाग्य के अधीन है। कहा भी है
"भाग्य विरुद्ध होने पर अपने दोष दूर करने के लिए तथा अपने
चित्त को स्थिर करने के लिए चतुर को काम करना चाहिए। और भी "उद्योगी पुरुष-सिंह के पास लक्ष्मी आती है । 'भाग्य ही ठीक है', ऐसा तो कायर कहता है। भाग्य को अलग रखकर तू अपनी शक्ति के अनुसार पुरुषार्थ कर; बाद में यत्न करते हुए यदि काम न बने तो इसमें क्या हर्ज है ?"
करटक ने कहा, "यह तो बता कि तूने नीति के बीज कैसे बोये हैं ?" दमनक ने कहा, "मैंने झूठी बातें कहकर उन दोनों के बीच में भेद डाल दिया है। तू फिर उन दोनों को एक जगह बैठकर सलाह करते हुए नहीं